Geeta Gyan: क्रोध की अग्नि में सद्बुद्धि जलकर हो जाती है नाश, श्री कृष्ण ने गीता में बताया इससे बचने का मार्ग

Geeta Gyan In Lock down Part 14: लॉकडाउन के इस भय के वातावरण में अपनी मानसिक स्थिति खराब न करें। इससे सिवाए हानि के कुछ प्राप्त नहीं होता। भक्ति में मन को लगाएं, ईश्वर पर भरोसा रखें और राम नाम का जाप करें।

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Geeta Gyan In Lock down Part 14: क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। इस क्रोध में आकर लोग सही-गलत के बीच का अंतर ही भूल जाते हैं और समस्त पापों के भागीदार बन जाते हैं।

क्रोध में अपने भी शत्रु के भांति अप्रिय लगने लगते हैं और ये हमारी मानसिक स्थिति को अपने वश में कर असंतुलित कर देता है। इस हालात का शिकार हो मनुष्य कई अनजाने पाप कर बैठता है जिससे भक्ति का नाश हो जाता है। आइए जानते हैं कि गीता के अनुसार इस क्रोध से बचने के का क्या मार्ग दर्शाया गया है।   

क्रोधाधवती सम्मोहः सम्मोहातस्मृतिविभ्रमहः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशातप्रनश्यति।।

गीता:अध्याय 02 श्लोक 63

भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि क्रोध से मोह या यूं कहें कि मूढ़ भाव उत्पन्न होता है। क्रोध से उत्पन्न मूढ़ता से स्मृति का नाश होता है तथा वह भ्रमित होती है। अब इससे ज्ञान का नाश होता है। बुद्धिनाश से मनुष्य अपनी स्थिति से बहुत नीचे गिर जाता है।

दार्शनिक व आध्यात्मिक अर्थ- इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने क्रोध को समस्त पापों का मूल बताया है। श्री रामचरितमानस में भी कहा गया है काम, क्रोध, मद, लोभ सब नाथ नरक के पंथ। क्रोध एक अग्नि है जिसमें सदबुद्धि जल जाती है।

क्रोध में आकर हम अपना विवेक खो बैठते हैं। हमको बिल्कुल पता ही नहीं होता कि ज्ञान व अज्ञान क्या है? हम नहीं जान पाते उचित अनुचित क्या है? हम क्रोध की अग्नि में अपनों को भी शत्रु मान लेते हैं। नरक का प्रवेश द्वार क्रोध है। भगवान कहते हैं कि क्रोध से मूढ़ भाव उत्पन्न होता है।

मूढ़ता का सबसे पहला कार्य होता है कि स्मृति का विनाश। जब स्मृति मरती है व विस्मृति आरम्भ होती है तो मानसिक अवस्था असंतुलित हो जाती है। मानसिक असंतुलन से पाप हो जाता है। पाप बढ़ने से ज्ञान व भक्ति का नाश होता है।

आपके कई जन्मों के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। सोचिए एक क्रोध ने आपका यह लोक तथा परलोक दोनों का नाश किया। भगवान यहां तक कहते हैं कि क्रोध के परिणामस्वरूप तुम्हारे कृत्यों से तुम बहुत नीचे गिर जाते हो। अतः परमात्मा कृष्ण का सरल भाषा में संदेश है कि क्रोध कदापि न करें।

वर्तमान समय में इस श्लोक की प्रासंगिकता- भय व अनिश्चितता के इस माहौल में लोगों की मानसिक स्थिति खराब हो सकती है, जिससे क्रोध का आना स्वाभाविक है। वर्तमान में जैसे ईश्वर आपको रखे वैसे ही रहिए।

सीता राम सीता राम सीता राम कहिए, जाहि विधि राखें राम ताहि विधि रहिए। स्थितिप्रज्ञता आवश्यक है। अपने दिल व दिमाग पर नकारात्मक विचारों को मत प्रभावी होने दें। क्रोध से सिवाय विनाश के कुछ नहीं मिलता है।

अतः भगवान का आदेश मानकर क्रोध का आज से व अभी से ही त्याग कीजिए। भक्ति में मन लगाएं। सब ठीक हो जाएगा।

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