Geeta Gyan: प्रेम व परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है, श्री कृष्ण ने गीता में मानव जाति को दिखाई ये राह

Geeta Gyan In Lock down Part 15: लॉकडाउन के इस कठिन हालात में आप जितना संभव हो लोगों की मदद करें। जन कल्याण करने वाला व्यक्ति भक्ति की चरम अवस्था में पहुंच कर लोक व परलोक हर जगह पुण्य का भागिदार बन जाता है।

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Geeta Gyan In Lock down Part 15: जो भी व्यक्ति प्रेम व जन कल्याण करने में विश्वास रखता है वह वास्तव में पुण्य कमाता है। ईश्वर जब जब इस धरती पर अवतरित होते हैं तो वो जन कल्याण हेतु कार्य ही करते हैं और समस्त मानव जाति को जन कल्याण का मार्ग भी दिखाते हैं। अर्थात जो भी व्यक्ति उनके दिखाए गए मार्ग को अपना धर्म मानकर जन कल्याण का कार्य करता है वो लोग व परलोग किसी भी जगह पराजित नही होता और न ही उसका ये पुण्य समाप्त होता है। आइए जानते हैं गीता के अनुसार जनकल्याण का उदेश्य।

गीता:अध्याय 06 श्लोक 40
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हिं कल्याणकृतकश्रीद दुर्गतिं तात गच्छति।।

भावार्थ- भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति निरन्तर जन कल्याण के ही कार्य करता रहता है उसका इस लोक व परलोक में कहीं भी विनाश नहीं होता तथा न ऐसा भलाई करने वाला व्यक्ति कभी भी किसी से पराजित होता है।

दार्शनिक व आध्यात्मिक अर्थ- जो व्यक्ति सबसे बड़ा धर्म परोपकार व प्रेम को मानता है वही वास्तव में आध्यात्मिक है। धार्मिक व आध्यात्मिक दो अलग अलग विषय हैं। भगवान श्री कृष्ण यहां कहते हैं कि जो व्यक्ति निरन्तर समाज के कल्याण के लिए कार्य करता है वह एक तरह से मेरे द्वारा निमित्त शुभ कार्य को ही कर रहा है। भगवान धरती पर जब जब अवतार लिए हैं उनका मुख्य कार्य रहा है जनकल्याण। जनकल्याण के लिए उन्होंने आने वाली समस्त मानव जति को एक राह भी दिखाई। ईश्वर यहां यह स्पष्ट कर रहे हैं कि ऐसे कल्याणकारी पुरूष का कभी भी लोक या परलोक में विनाश नहीं होता है।

वह अजेय है। आत्मा तो अमर है। शरीर नश्वर है। मृत्यु निश्चित है। पुनर्जन्म होना ही होना है जब तक मोक्ष नहीं मिल जाता है। आत्मा का चरम उद्देश्य आवागमन से मुक्ति व मोक्ष है। ईश्वर के बताए मार्ग का अनुसरण ही धर्म है। जनकल्याण की पराकाष्ठा पर आप भक्ति की चरम अवस्था पर पहुंच जाते हैं क्योंकि यहां पर भी आप भगवान द्वारा प्रदत्त कार्य को ही कर रहे हैं। यदि आप भगवान द्वारा प्रदत्त शुभ कल्याणकारी कार्यों को कर रहे हैं तो यहां कृष्ण स्पष्ट करते हैं कि आपका किसी भी लोक में यह महान पुण्य समाप्त नहीं होगा व न ही कभी भी आप किसी से पराजित होंगे।

वर्तमान समय में इस श्लोक की प्रासंगिकता- आज डॉक्टर जो इस महामारी में जनकल्याण कर रहे हैं वो इस समय देवता के स्वरूप में हैं। अपने जान की परवाह किये बिना दिन रात जनता की सेवा कर रहे हैं। इनका भी परिवार है लेकिन पूर्ण समय जनकल्याण हेतु दे रहे हैं। डॉक्टरों के साथ नर्स व अन्य लोग जो अपनी सेवाएं दे रहे हैं वो सभी देव तुल्य हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इनके लिए यह श्लोक प्रासंगिक है। हमें इनका सम्मान करना चाहिए।

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