ऋषि मुनियों के वरदान से हुआ था हनुमान जी का जन्म, जानिए बजरंगबली के जन्म से जुड़ी कथा

वेदों और पुराणों के अनुसार पवन पुत्र हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था।  हनुमान जी के पिता सुमेरु पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी।

Hanuman ji
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Hanuman ji ke Janm ki kahani: प्रभु राम को सर्वस्य मानने वाले और रामरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसी दास ने एक चौपाई में लिखा है कि मंत्र महामणि विषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। अर्थात् विषय रूपी सांप का जहर उतारने के लिए मंत्र और महामणि हैं। यानि मंत्र सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करते हैं। आज मंगलवार है इस दिन भगवान हनुमान जी का मंत्र जाप और सुंदरकांड का पाठ करने से समस्त कष्टों का नाश होता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन संकटमोचन हनुमान जी के जन्म की कथा पढ़ने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है। तो आइए ऐसे में जानते हैं वीरों के वीर महावीर के जन्म की अद्भुत कथा। 

संकटमोचन हनुमान जी के जन्म की कथा

वेदों और पुराणों के अनुसार पवन पुत्र हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हनुमान जी के पिता सुमेरु पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। रामचरितमानस में संकटमोचन भगवान हनुमान जी के जन्म का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि हनुमान जी का जन्म ऋषियों के दिए वर से हुआ था। कहा जाता है कि एक बार वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के निकट पहुंचे।

उन्होंने देखा कि बहुत से ऋषि वहां पर आए हुए हैं और वह समुद्र के किनारे आसन लगाकर पूजा अर्चना कर रहे हैं। तभी वहां पर एक विशाल हाथी आ गया और उसने ऋषि मुनियों के यज्ञ को भंग करना और उन्हें परेशान करना प्रारंभ कर दिया। तभी वानरराज केसरी ने पर्वत के शिखर से हाथी को उत्पात मचाते हुए देखा। इसे देख उन्होंने इस विशालकाय हांथी के दांत तोड़ दिए और उसे मार डाला।
इससे प्रसन्न होकर ऋषि मुनियों ने वानरराज केसरी को इच्छानुसार रुप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र का वरदान दिया।



भगवान शिव के 11 वें रूप हैं हनुमान जी

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन माता अंजनी मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की तरफ चली जा रही थी। तभी वह डूबते हुए सूरज की लालिमा की खूबसूरती को देख भगवान सूर्य को निहारने लगी। उसी समय अचानक से तेज हवा चलने लगी और उनके वस्त्र उड़ने लगे। वह हवा को तेज चलते देख चारों तरफ निहारने लगी। लेकिन उन्हें कोई नहीं दिखाई दिया और पत्ते भी नहीं हिल रहे थे। इसे देख माता अंजनी को लगा कि कोई मायावी राक्षस अदृश्य होकर यह कृत्य कर रहा है। इस पर उन्हें क्रोध आ गया और वह बोली की ‘कौन दुष्ट मुझ पतिपरायण स्त्री का अपमान करने की कोशिश कर रहा है’।

तभी अचानक से पवन देव हाथ जोड़कर माता अंजनी के समक्ष प्रकट हो गए और बोले हे देवी क्रोध ना करें और मुझे क्षमा करें। आपके पति को ऋषियों ने मेरे समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया है। इसी कारण मैं विवश हूं और इसी विवशता के कारण मैंने आपके शरीर का स्पर्श किया है। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा। उन्होंने इससे आगे कहा कि हे देवी भगवान रुद्र मेरे स्पर्श द्वारा आपके पुत्र के रूप में प्रविष्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। इस प्रकार वानरराज केसरी के यहां भगवान शिव के रूप में स्वयं अवतार लिया है। 

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