Hal Shashthi 2022 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्रीबलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन श्री बलराम जी का जन्म हुआ था। हल षष्ठी व्रत को कई क्षेत्रों में हलछठ या बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। इस साल हल षष्ठी का व्रत 17 अगस्त 2022 को रखा जाएगा।
पुत्रों की दीर्घायु और सुख संपन्नता के लिए हल षष्ठी का व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माताएं सुबह स्नान आदि करने के बाद हलछठ का व्रत शुरु करती है और विधि-विधान से पूजन करती हैं। लेकिन हल षष्ठी की पूजा में इससे जुड़ी व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए, तभी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
हल षष्ठी व्रत कथा
हलषष्ठी व्रत कथा के अनुसार, पौराणिक समय में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसव समय नजदीक था। एक तरफ वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी तो दूसरी और उसका मन दूध-दही बेचने में लगा हुआ था। क्योंकि समय से दूध-दही न बेचने पर वह खराब हो जाता। यह सोचकर ग्लालिन दूध-दही का मटका अपने सिर पर रखा बेचने के लिए घर से निकल गई। लेकिन कुछ दूर पहुंचने के बाद ही उसे असहनीय प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। तब वह एक झरबेरी की ओट पर चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। ग्वालिन बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांव में दूध बेचने चली गई। संयोग यह था कि उस दिन हलषष्ठी थी। ग्वालिन ने गाय और भैंस के दूध को मिलाकर गांव वालों को केवल भैंस का दूध बताकर बेच दिया। इधर झरबेरी के पास उसका नवजात शिशु अकेला था। उसके समीप एक किसान खेत में हल जोत रहा था। तभी किसान के बैल भड़क उठे और बच्चे पर हमला कर दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
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इस घटना के बाद किसान डर गया और वहां से भाग गया। जब कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर बच्चे के पास पहुंची तो अपने बच्चे की दशा देख दुखी हो गई। उसने यह सोचा कि यह सब उसके पापों की सजा है। ग्वालियर ने सोचा कि यदि मैं गांव वालों को झूठ बोलकर दूध ना बेचती और गांव की महिलाओं का धर्म भ्रष्ट ना किया होता तो आज मेरा बच्चा जीवित होता। ग्वालिन अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए गांव वालों को सच बताने चली गई। ग्वालिन ने जिन-जिन घरों में दूध बेचा वह उनके गली गली घूम कर उनके घर जाकर अपना झूठ बताने लगी। हालांकि गांव की महिलाओं ने उसपर रहम कर उसे क्षमा कर दिया। इसके बाद महिला जब ग्वालिन झरबेरी के पास पहुंची तो वह अपने पुत्र को जीवित देख आश्चर्यचकित रह गई। इस घटना के बाद से ही ग्वालियर ने झूठ ना बोलने का प्रण लिया।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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