देवभूमि उत्तराखंड में ऋतुओं के अनुसार कई त्योहार मनाए जाते हैं। ये त्योहार वहां की परंपरा और पहाड़ी सभ्यता को आज भी जीवंत रखे हुए हैं। उत्तराखंड में एक विशेष पर्व हरेला मनाया जाता है। हरेला का शाब्दिक अर्थ होता है हरियाली।
हरेला पर्व (Harela) हर साल में 3 बार मनाया जाता है। पहला चैत्र के महीने में, दूसरा सावन के महीने में और तीसरी बार आषाढ़ के महीने में मनाया जाता है।
लेकिन सावन वाले हरेला को विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि यह महीना भगवान शिव का विशेष महीना होता है।
Harela 2020 : कैसे मनाते हैं सावन मास में हरेला
सावन लगने के 9 दिन पहले एक टोकरी में मिट्टी रखकर उसमें पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज को बो दिया जाता है और इसे किसी ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां सूर्य की सीधी रोशनी इस पर ना पड़े, और हर सुबह इसे पानी से सींचा जाता है। 9 दिन बाद इसमें पत्ते उग आते हैं, दसवें दिन यानी हरेला के दिन इन्हें काट लिया जाता है और विधि पूर्वक पूजा-पाठ करके हरेला देवता को चढ़ा दिया जाता है।
Harela 2020 : होता है हरकाली पूजन
उत्तराखंड में हरेला से ठीक एक शाम पहले डेकर यानी हरकाली पूजन किया जाता है। इस पूजा में घर के आंगन से ही शुद्ध मिट्टी लेकर उससे भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती हैं। इसके बाद इन मूर्तियों को सुंदर रंगों से रंगा जाता है। सूखने के पश्चात इनका श्रृंगार किया जाता है। जिसके बाद हरेला के सामने इन मूर्तियों को रखकर उनका पूजन किया जाता है। उसके बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है। यह पूजा वहां के हर घर में होती है और कहीं-कहीं तो पूरा गांव एक साथ इस पर्व को गांव के ही किसी मंदिर में मनाता है।
Harela 2020 : आत्मा में बसी है परंपरा
यह त्योहार केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि जहां भी उत्तराखंड के लोग बसे हैं, वहां इस त्योहार को उतने ही उत्साह और उमंग से मनाते हैं। हरेला के इस त्योहार पर घर के बड़े लोग अपने से छोटे लोगों को कुछ आशीर्वाद वाले लोक गीत गा कर उन्हें आशीर्वाद देते हैं और उनके सुखी जीवन की कामना करते हैं।
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