Holika Dahan Date and Time: क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, जानिए होली जलाने के पीछे पौराणिक कथा?

Holika Dahan Date and Time: इस वर्ष होली 29 मार्च को मनाई जाएगी जबकि होलिका दहन ठीक एक दिन पहले यानी 28 मार्च को होगा। आइए जानते हैं 2021 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है।

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होलिका की तिथि और शुभ मुहूर्त  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • इस वर्ष होली 29 मार्च को मनाई जाएगी
  • होलिका दहन 1 दिन पहले 28 मार्च को होगी
  • होलिका दहन सूर्यास्त के बाद किया जाता है

नई दिल्ली: इस साल होली का त्योहार 29 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन (छोटी होली) 28 मार्च को है। यह पर्व फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्‍योहार मना रहे हैं तो यकीनन आप इससे जुड़ी कथाएं भी जानना चाहेंगे। भगवान कृष्‍ण की नगरी के अलावा होली का पर्व भक्त प्रह्लाद से भी जुड़ा है ज‍िनकी रक्षा के लिए भगवान व‍िष्‍णु ने नरस‍िंह का अवतार ल‍िया था। होल‍िका दहन की कथा भी इन्‍हीं से जुड़ी है। नरस‍िंह यानी कि नर और सिंह का सम्मिलित अवतार जो भगवान व‍िष्‍णु का चौथा अवतार माना जाता है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
28 मार्च की सायंकाल 06 बजकर 38 मिनट से रात्रि 08 बजकर 58 मिनट तक है। यानी इसी समय के भीतर आप होलिका का दहन करें।
 
नरसिंह अवतार की कहानी:
पौराणिक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में कश्यप नाम के एक राजा हुआ करते थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था और उन्हें अपनी पत्नी से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनका हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम रखा गया। राजा कश्यप के पहले पुत्र हिरण्याक्ष को भगवान श्रीविष्णु ने वराह रूप धारण करने के बाद मार दिया था, जब वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था।

अपने भाई की मौत के बाद हिरण्यकशिपु बेहद क्रोधित हो गया और उसने बदला लेने की ठानी। उसने इसके लिए कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी ताकि भगवान से मनचाहा वरदान हासिल कर सकें। कठोर तपस्या के बल पर उसने ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया।

वरदान पाकर हिरण्यकशिपु हुआ अहंकारी:
वरदान पाने के बाद वह अहंकार से भर गया। अपनी प्रजा पर वह काफी अत्याचार करने लगा। हिरण्यकशिपु को अपनी पत्नी से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसका नाम था प्रह्लाद। वह अपने पिता के स्वभाव के बिल्कुल विपरीत था जबकि एक राक्षस कुल में जन्म लेने वाला प्रह्लाद सात्विक गुणों से भरपूर था।

वह भगवान विष्णु को बहुत मानता था और हमेशा प्रभु की भक्ति में लीना रहता। प्रह्लाद अपने पिता को उनकी खराब आदतों और प्रजा पर किए जानेवाले अत्याचारों का विरोध करता था। प्रह्लाद का मन भगवान की भक्ति से हट जाए। इसके लिए हिरण्यकशिपु ने बड़ी चालें चलीं और निरंतर कोशिशें की।

प्रह्लाद को मारने के लिए तमाम जतन किए

लेकिन जब हिरण्यकशिपु को यह ज्ञात हो गया कि प्रह्लाद का मन ने भक्ति मार्ग से नहीं हटेगा तो उसने अपने पुत्र प्रह्लाद की हत्या की साजिश रची। इसके लिए हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद भी ली। उसकी बहन होलिका को भगवान से यह वरदान हासिल था कि वह आग में नहीं जलेगी। होलिका की गोद में बिठाकर प्रह्लाद को जिंदा ही चिता में जलवाने की कोशिश की गई लेकिन होलिका जिंदा जल गई जिसे नहीं जलने का वरदान हासिल था लेकिन  प्रह्लाद को आंच तक नहीं आई। वह भगवान की भक्ति करता हुए अग्नि की चिता से बाहर निकल आया।

प्रह्लाद को जिंदा देख हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया:
प्रह्लाद को जिंदा देख हिरण्यकशिपु दंग रह गया और क्रोध में आकर उसने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। वह तलवार लेकर प्रह्लाद की ओर वार करने के लिए जैसे ही बढ़ा तो खंभे को चीरकर श्री नरसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़ कर उसे अपनी जांघों पर डाल कर उसकी छाती अपने नखों यानी नाखून से फाड़ डाली। इस तरह श्री विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की। प्रह्लाद के हने पर उन्होंने हिरण्यकशिपु को मोक्ष प्रदान किया।  भगवान ने नरसिंह रूप में खंभा से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया जिसे मणिखंभ कहा गया।

होलिका दहन का उत्तम समय:

होलिका दहन के लिए जरूरी होता है कि वह समय सबसे पहले भद्रा से मुक्त होना चाहिए। भद्रा को विष्टि करण भी कहते हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है। सबसे प्रमुख सिद्धांत यह है कि पूर्णिमा प्रदोष काल व्यापिनी होनी चाहिए।

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