Janmashtami 2022 Krishna Puja Mantra In Sanskrit: जन्माष्टमी के ही दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन लोग भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ उनकी बांसुरी का भी श्रृंगार करते हैं। इसके बाद विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं। पूजा के क्रम में भक्त मंत्रोच्चारण भी करते हैं। आइए श्रीकृष्ण से जुड़े कुछ संस्कृत मंत्र और इसके हिंदी अर्थ के बारे में जान लेते हैं।
Choti Choti Gaiya Chote Chote Gwal Lyrics in Hindi
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
भावार्थ:
मैं वासुदेवानंदन जगद्गुरु श्री कृष्ण चंद्र को नमन करता हूं,
जिन्होंने कंस और चानूर को मार डाला, देवकी का आशीर्वाद।
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।
भावार्थ:
श्रीराधारानी वृंदावन की स्वामिनी हैं और श्री कृष्ण वृन्दावन के स्वामी,
मेरे जीवन का-शोक श्रीराधा-कृष्ण के सहायक में हो।
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अतः सत्यं यतो धर्मो मतो हीरार्जवं यतः।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।
भावार्थ:
जहां सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता का वास है
वहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं और जहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं, वहां विजय का वास होता है।
पृथिवीं चान्तरिक्षं च दिवं च पुरुषोत्तमः।
विचेष्टयति भूतात्मा क्रीडन्निव जनार्दनः।।
भावार्थ:
वे सर्वंतरीमी पुरुषोत्तम जनार्दन हैं, मानो वे खेल के माध्यम से पृथ्वी,
आकाश और स्वर्गीय दुनिया को प्रेरित कर रहे हैं।
कालचक्रं जगच्चक्रं युगचक्रं च केशवः।
आत्मयोगेन भगवान् परिवर्तयतेऽनिशम्।।
भावार्थ:
यह श्रीकेशव ही है जो अपनी चिचचक्ति से हरणिश कालचक्र,
जगचक्र और युग-चक्र को घुमाता रहता है।
कालस्य च हि मृत्योश्च जङ्गमस्थावरस्य च।
ईष्टे हि भगवानेकः सत्यमेतद् ब्रवीमि ते।।
भावार्थ:
मैं सत्य कहता हूँ – वही काल, मृत्यु और समस्त चल-अचल जगत का स्वामी है
और अपनी माया से संसार को वश में रखता है।
तेन वंचयते लोकान् मायायोगेन केशवः।
ये तमेव प्रपद्यन्ते न ते मुह्यन्ति मानवाः।।
भावार्थ:
जो केवल उसकी शरण लेते हैं,
वे प्रेम में नहीं पड़ते।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिर्मतिर्मम।।
भावार्थ:
जहां योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहां गांदिवंधरी अर्जुन हैं,
वहीं श्री, विजय, विभूति और निचल नीति है – यह मेरा मत है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
भावार्थ:
श्री कृष्ण कहते हैं कि जब भी ब्रह्मांड में धर्म की हानि होती है,
अर्थात अधर्म बढ़ता है, तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूं।
जो अधर्म करते हैं, भगवान उनका नाश करते हैं,
इसलिए धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
भावार्थ:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। इसलिए कर्म के फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस श्लोक में कर्म का महत्व समझाया गया है। हमें केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए। यानी अपना काम पूरी ईमानदारी से करें और गलत कामों से बचें।
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत।।
भावार्थ:
कहा गया है कि आत्मा को कोई हथियार नहीं काट सकता, आग नहीं जल सकती, पानी सोख नहीं सकता, हवा उसे सुखा नहीं सकती। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि आत्मा शरीर बदलती है, कभी नहीं मरती। इसलिए किसी की मृत्यु पर शोक नहीं करना चाहिए।
वास्तव में, ये सभी वो मंत्र माने जाते हैं जिनका ज्ञान भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश के दौरान दिया था। ऐसी मान्यता है कि मंत्रों का उच्चारण करने से भगवान बहुत खुश होते हैं और भक्तों को उनकी भक्ति का मनचाहा वरदान मिलता है।
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