Kaal Bhairav Ashtak Lyric: हिंदू धर्म में भगवान भैरव बाबा को शिव का ही एक स्वरूप माना गया है। ऐसी मान्यता है भैरव बाबा की पूजन और स्मरण करने से ही राहु केतु शांत हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार काल भैरव अष्टमी वाले दिन काल भैरव नाथ की उत्पत्ति हुई थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की उत्पत्ति होने के कारण इनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ और उन्हें इन्हें अजन्मा माना जाता है। बाबा भैरव अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि बाबा भैरव के दर्शन के बिना किसी भी देवी देवताओं के दर्शन पूरे नहीं माने जाते हैं। पूजा पाठ में भैरव बाबा का विशेष स्थान है। ऐसी मान्यता है कि बाबा भैरव की पूजा व यज्ञ करने से व्यक्ति हर ग्रहों के दोष से दूर हो जाता है। भगवान भैरव के पूजन में काल भैरव अष्टक का पाठ का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि काल भैरव अष्टक का पाठ करने से बाबा भैरव की विशेष कृपा बनती है और व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट भी टल जाते हैं।
सबसे पहले इस मंत्र का करें जाप
काल भैरव अष्टक का पाठ करने से पहले इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। मंत्र- 'ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि।' कालभैरव जी का नाम उच्चारण, मंत्र जाप, स्तोत्र, आरती इत्यादि तत्काल प्रभाव देता है और व्यक्ति को सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।
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काल भैरव अष्टक
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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