Panchak Kaal: कब है मृत्यु पंचक, क्यों माना जाता है पंचक में मृत्यु को अशुभ, जानें क्या होता है परिणाम

Panchak Kab Hai: हिंदू धर्म में पंचक काल को अशुभ माना जाता है। यह हर महीने पड़ता है। इस महीने 18 जून को मृत्यु पंचक की शुरुआत हो रही है जो 23 जून तक चलेगा। हिंदू शास्त्रों के अनुसार पंचक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए।

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panchak kaal 18 june  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • पंचक में शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं
  • इस साल पंचक की शुरुआत 18 जून को शनिवार को हो रही है
  • पंचक को मृत्यु पंचक कहते हैं, इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं

Know What Is Panchak Kaal: हिन्दू धर्म में पंचक मुहूर्त का विशेष महत्व है। पंचक में शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इस साल जून में पंचक की शुरुआत 18 जून को दिन शनिवार को हो रही है। पंचक को मृत्यु पंचक कहते हैं। इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। पंचक के दौरान यात्रा करने में भी मनाही होती है। पंचक में लेनदेन व्यापार और किसी भी तरह का सौदा करना भी अशुभ माना जाता है। पंचक हर माह 5 दिन का होता है और इस दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। यह अशुभ काल होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर पंचक काल में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसे अशुभ मानते हैं, क्योंकि मान्यता है कि उसके साथ कुल में पांच लोगों की मृत्यु की आशंका बनी रहती है। आइए जानते हैं पंचक मृत्यु का क्या परिणाम होता है...

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जानें, कब है पंचक

आषाढ़ का महीना 15 जून बुधवार से आरंभ हो रहा है। इस दिन आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है, लेकिन पंचंक 18 जून 2022, शनिवार से आरंभ हो रहा है। पंचांग के अनुसार 23 जून 2022, गुरुवार को पंचंक समाप्त होगा।

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कब से कब तक लगेगा पंचक

पंचक शुरू- 18 जून 2022, शनिवार को शाम 6 बजकर 43 मिनट से पंचक समाप्त- 23 जून 2022, गुरुवार को प्रात: 6 बजकर 14 मिनट पर।

पंचक में मृत्यु क्यों माना जाता है अशुभ

पुराणों के अनुसार, जब भगवान राम द्वारा रावण की मृत्यु हुई थी, उसके बाद से ही पांच दिन का पंचक माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, अगर पंचक काल में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसे अशुभ मानते हैं क्योंकि उसके साथ ही कुल में पांच लोगों की मृत्यु की आशंका बनी रहती है। ज्योतिष पांच नक्षत्रों की कालावधि पंचक कहलाती है। यानी चंद्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक होता है। मान्यता है कि इनमें संपादित अशुभ कर्मों का पांच बार दोहराव होता है। खगोल विज्ञान की दृष्टि से समझें तो 360 अंशों वाले भचक्र में पृथ्वी जब 300 डिग्री से 360 डिग्री के मध्य भ्रमण की अवधि को पंचक काल कहते हैं, तब धरती पर चंद्रमा का प्रभाव अत्यधिक होता।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।) 

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