Geeta Gyan: अपने स्वार्थ के लिए ईश्वर की संरचना से न करें खिलवाड़, मन में जगत कल्याण का रखें भाव

Geeta Gyan In Lock down Part 7: लॉकडाउन में आप पवित्र गीता का पाठ करें और अपने जीवन को नई राह दिखा सकते हैं। इसमें हम आपकी मदद करेंगे। आईए जानते हैं कि गीता के अनुसार हमें किस तरह मानवता को बरकारार रखाना चाहिए।

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Geeta Gyan In Lock down Part 7: ईश्वर की बनाई सृष्टि में जब भी छेड़छाड़ होती है, उसका गंभीर परिणाम  भुगतने पड़ सकते हैं। गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि कैसे पूरा जगत उनके अधीन हैं। जानते हैं कि गीता के अनुसार हमें किस तरह मानवता को बरकारार रखाना चाहिए।

प्रकृतिं स्वामवस्ट्भ्य विसृजामि पुनः पुनः।
भूतग्राममिमं कृतत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात ।।

(गीता :अध्याय 16 श्लोक 21)

भावार्थ: भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि- हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्रकृति मेरी है। सम्पूर्ण विराट जगत मेरे वश में अर्थात अधीन है। यह सम्पूर्ण विराट जगत मेरी इच्छा से बार बार प्रकट होते हैं व जब मैं चाहता हूं तो इनका विनाश करके फिर नए सिरे से रचता हूं।

दार्शनिक व आध्यात्मिक अर्थ: यह सम्पूर्ण विराट जगत भगवान का बनाया हुआ है। कब इस जगत का क्या करना है ये ईश्वर खुद तय करता है। यह दृश्य जगत भगवान की अपारशक्ति की अभिव्यक्ति है। यह ईश्वर प्रकृति के कण-कण का नेतृत्व करते हैं। यह बराबर देखते रहते हैं कि कब इसके बिगड़ते स्वरूप को संतुलित करना है।

वो कई लोकों की सृष्टि करते हैं। मनुष्य भगवान की सर्वश्रेष्ठ कृति है। कई योनियों में भटकने के बाद तब यह पवित्र व ऊर्जा से भरा हुआ शरीर मिलता है। ईश्वर आपको सब देता है। ये नदी, चांद, तारे, जल, भूमि, गगन यहां तक कि सूर्य। ये सब के सब आपके स्वागत में तैयार रहते हैं। तो आपका कर्तव्य क्या बनता है?

इनको समाप्त करना या इनका संरक्षण करना। नदियों को दूषित कर दिए। विज्ञान की अंधी दौड़ में हवा में जहर घोल दिए। प्रतिस्पर्धा में खतरनाक नाभिकीय हथियार बना लिए। पर्वतों के सीने को चीर कर लहूलुहान कर दिए। अपने जिह्वा के स्वाद के चलते जीवों को मारना शुरू कर दिए। ये प्रकृति है।

भगवान कहते हैं कि यह विराट जगत का मैं संतुलनकर्ता हूँ। जब धर्म का पतन होता है, जब मनुष्य अपने आपको ही सृष्टि का कर्ता मान लेता है तो मैं इस विराट जगत को संतुलित करता हूं।

अब भी सबक लो कि मानवता को ही धर्म का सारांश मानकर, जगत कल्याण का भाव रखकर, सम्पूर्ण जगत को भगवान की सुंदर रचना स्वीकृत कर कभी पाप नहीं करेंगे तभी ये जगत बचेगा वरना सब नष्ट हो जाएगा। भगवान कृष्ण ही इस जगत के पालनहार हैं। आईए उनके शरणागत रहें।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस श्लोक का अर्थ:
भय के इस वातावरण में हम यह स्वीकार कर लें कि हमारी औकात कुछ नहीं है सिवाय भगवान के शरणागति के क्योंकि, यह सम्पूर्ण जगत भगवान का बनाया हुआ है तथा वह इसे नष्ट कर सकते हैं।

प्रकृति से छेड़छाड़ बन्द करें। मानवता को मानें। सब मनुष्य भगवान के बनाये हुए हैं। विज्ञान व विकास की इस अंधी दौड़ में भी कोई ऐसा कृत्य न करें जो धर्म के विरुद्ध हो। आईए इस विराट जगत के स्वामी भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम कर अपने पापों का प्रायश्चित करें।

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