Sri Krishna 56 Bhog: क्या आप जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण को लगाए जाने वाले 56 भोग का नाम, जानिए महत्व

Lord Sri Krishna 56 Bhog: भगवान श्री कृष्ण को 56 तरह के व्यंजनों का भोग लगाया है। इन सभी भोग का खास महत्व होता है, जिससे कई रोचक कथाएं जुड़ी हुई है। जानते हैं भगवान कृष्ण भोग लगाए जाने व्यंजनों के नाम।

Sri Krishna 56 Bhog
श्रीकृष्ण 56 भोग 
मुख्य बातें
  • श्रीकृष्ण को लगाया जाता है 56 व्यंजनों के महाभोग
  • गोवर्धन पर्वत से जुड़ी है 56 भोग की कथा
  • 7 दिन और 8 पहर के अनुसार श्री कृष्ण के लिए बने थे 56 भोग

Sri Krishna 56 Bhog Name and Importance: भगवान श्री कृष्ण को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की परंपरा है। भगवान को लगाए जाने वाले इन भोग को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण को अर्पित किए जाने वाले इन 56 व्यंजनों के अलग-अलग नाम होते हैं और इससे रोचक कथाएं भी जुड़ी हैं, जिनका विशेष महत्व होता है। भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा यानी जन्माष्टमी के अवसर पर खासकर उन्हें 56 व्यंजनों का भोग लगाए जाते हैं। जानते हैं आखिर भगवान को क्यों 56 व्यंजनों का भोग लगाते हैं और क्या है इसके पीछे की कहानी और महत्व के बारे में..

श्रीकृष्ण के 56 भोग की कथा

वैसे तो भगवान श्री कृष्ण के छप्पन भोग से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा के कराए जाने पर देवराज इंद्र उनसे नाराज हो गए थे। तब उन्होंने बृज वासियों को माफी मांगने पर विवश करने के लिए खूब वर्षा कराई थी। हालांकि बाद में जब इंद्र को भूल का आभास हुआ तो उन्होंने कृष्ण से माफी भी मांगी। देवराज इंद्र के आदेश पर ऐसी ही वर्षा हुई और इससे बृजवासी परेशान हो गए।

बृजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने एक हाथ से उठा लिया और सभी बृज वासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय लगातार 7 दिन तक 7 दिनों तक बिना अन्न जल ग्रहण किए थे। माता यशोदा अपने बाल गोपाल यानी श्री कृष्णा को एक दिन में आठ पहर भोजन कराती थीं। इस तरह से 7 दिनों 8 पहर के हिसाब से मां यशोदा ने उनके लिए बृजवासियों संग मिलकर छप्पन भोग बनाए थे। इसलिए तब से ही भगवना श्रीकृष्ण की पूजा में उन्हें छप्पन व्यंजनों का महाभोग लगाने की परंपरा है।

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भगवान श्रीकृष्ण के 56 भोग का नाम

1. भक्त (भात),2. सूप (दाल),3. प्रलेह (चटनी),4. सदिका (कढ़ी),5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),6. सिखरिणी (सिखरन),7. अवलेह (शरबत),8. बालका (बाटी), 9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),11. बटक (बड़ा),12. मधु शीर्षक (मठरी),13. फेणिका (फेनी),14. परिष्टाश्च (पूरी),15. शतपत्र (खजला),16. सधिद्रक (घेवर)17. चक्राम (मालपुआ),18. चिल्डिका (चोला),19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),20. धृतपूर (मेसू),21. वायुपूर (रसगुल्ला),22. चन्द्रकला (पगी हुई),23. दधि (महारायता),24. स्थूली (थूली)25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26. खंड मंडल (खुरमा), 27. गोधूम (दलिया), 28. परिखा, 29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30. दधिरूप (बिलसारू), 31. मोदक (लड्डू), 32. शाक (साग) 33. सौधान (अधानौ अचार), 34. मंडका (मोठ), 35. पायस (खीर) 36. दधि (दही), 37. गोघृत, 38. हैयंगपीनम (मक्खन), 39. मंडूरी (मलाई), 40. कूपिका 41. पर्पट (पापड़), 42. शक्तिका (सीरा), 43. लसिका (लस्सी), 44. सुवत, 45. संघाय (मोहन), 46. सुफला (सुपारी), 47. सिता (इलायची), 48. फल, 49. तांबूल, 50. मोहन भोग, 51. लवण, 52. कषाय, 53. मधुर, 54. तिक्त, 55. कटु, 56. अम्ल।

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(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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