Devshayani Ekadashi: देवशयनी एकादशी के दिन से विष्णु जी क्यों चले जाते हैं सोने? कौन संभालता है सृष्टि

Devshayani Ekadashi 2022: इस साल देवशयनी एकादशी का व्रत 10 जुलाई को रखा जाएगा। हिंदू धर्म में मान्यता है कि 10 जुलाई यानी देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु सोने चले जाते हैं। पौराणिक कथा में इसके पीछे बड़ी वजह बताई गई है।

Devshayani Ekadashi mantra
Devshayani Ekadashi  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने और व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है
  • देवशयनी एकादशी के दिन से चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं
  • हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में चले जाते हैं

Devshayani Ekadashi Puja Vidhi: इस साल 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। देवशयनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने और व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। देवशयनी एकादशी के दिन से चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु क्यों चले जाते हैं सोने...

जानिए, कब से शुरू होगा देवशयनी एकादशी

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मा​ह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 जुलाई दिन शनिवार को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर हो रहा है। यह तिथि अगले दिन 10 जुलाई रविवार को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट तक मान्य रहेगी। 11 जुलाई सोमवार को प्रात: 05 बजकर 31 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 17 मिनट के मध्य तक पारण कर सकते हैं।

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इसलिए निद्रा अवस्था में चले जाते है भगवान विष्णु

हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दौरान पाताल लोक में आराम करते हैं इसलिए सभी शुभ काम होना बंद हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही ये समय खत्म होता है हर शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। इन चार महीने कोई व्रत नहीं किया जाता है न ही भ्रमण किया जाता है, बल्कि एक ही जगह रहकर कुछ अनुशासन का पालन करते हैं। इस एकादशी पर शंखासुर दैत्य का संहार करने के बाद भगवान ने चार मास तक क्षीरसागर में शयन किया था और तभी से यह परंपरा बन गई है। कहा जाता है कि भगवान ने लंबे समय तक क्षीरसागर से युद्ध किया और फिर थकान मिटाने के लिए विश्राम करने चले गए थे। 

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भगवान शिव संभालते हैं सृष्टि

भगवान विष्णु के शयनकाल में चले जाने के बाद चार माह की अवधि में सृष्टि संचालन का जिम्मा शिव परिवार पर रहता है। इस दौरान पवित्र श्रावण मास आता है जिसमें एक माह तक भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। 

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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