अपना सिंहासन बचाने के लिए देवराज इंद्र ने मांगी ये चीज, भक्त प्रहलाद से छिन गया सब कुछ

Mythology of Prahlada and Indra: इंद्रदेव को केवल अपना चरित्र दान करते ही विष्णु भक्त असुरराज प्रहलाद से उनका सब कुछ छिन गया। शोर्य, वैभव, प्रतिष्ठा और सपंदा सभी ने उनका शरीर त्याग दिया।

Prahlada and Indra
इंद्र और प्रह्लाद 
मुख्य बातें
  • इंद्रदेव की नहीं की जाती पूजा
  • भगवान विष्णु के भक्त थे प्रहलाद
  • केवल चरित्र दान करते ही प्रह्लाद से छिन गया सबकुछ

Mythology of Asurraj Prahlada and indra dev: हिंदू धर्म में जिस तरह से व्रत, पर्व, त्योहार और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। ठीक उसी तरह पौराणिक और धार्मिक कथाओं का भी विशेष महत्व होता है। ये धार्मिक व पौराणिक कथाएं किसी न किसी देवी-देवता से जुड़ी होती है। इन्हीं कथाओं और मान्यताओं के जरिए हम अपनी संस्कृति और धर्म को विस्तृत रूप से जान पाते हैं और ज्ञान अर्जित कर पाते हैं। इन्हीं में से एक है देवराज इंद्र और असुरराज प्रहलाद की कथा, जोकि पौराणिक कथाओं में काफी प्रचलित है। असुरराज प्रहलाद जोकि भगवान विष्णु के परम भक्त और तपस्वी व दानी स्वभाव के थे। वहीं इंद्र को देवताओं का राजा कहा जाता है, लेकिन उनकी पूजा नहीं की जाती। क्योंकि गौतम ऋषि से उन्हें हजार योनियों का श्राप मिला है।    

इंद्रदेव को चरित्र दान करते ही कैसे प्रहलाद से छिन गया सबकुछ

प्रहलाद और देवराज इंद्र से जुड़ी कथा के अनुसार, प्रहलाद भगवा विष्णु के भक्त थे और उनका स्वाभाव तपस्वी व दानी था। प्रहलाद के गुणों के कारण उन्हें देवताओं के राजा देवराज इंद्र के स्थान दे दिया गया और राजा बना दिया गया। इस पर देवराद इंद्र क्रोधित और व्याकुल हो गए और सहायता के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंच गए। इंद्र ने गुरु बृहस्पति को सारी बात बताते हुए समस्या का समाधान करने की विनती की। तब गुरु बृहस्पति ने कहा कि, प्रहलाद को बल से नहीं हराया जा सकत है। प्रहलाद ने अपने शील के बदोलत ही तीनों लोक का राज्य प्राप्त किया और उसे उसके इसी स्वभाव से हराया जा सकता है।

इंद्र ने गुरु बृहस्पति से कहा, कैसे? गुरु बृहस्पति ने इंद्र से कहा कि प्रहलाद का स्वाभाव दयालु और दानी है। उसके द्वार से इसलिए कभी कोई भिक्षुक खाली हाथ नहीं लौटता। देवगुरु बृहस्पति इंद्र से बोले, तुम प्रहलाद को उसके इसी स्वाभाव से हरा सकते हो। तुम भिक्षुक का रूप धारण कर प्रहलाद के पास जाओ और भिक्षा में उसका शील (चरित्र) मांगना।

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इंद्र देव के भिक्षुक के रूप में प्रहलाद के द्वार पर खड़े हो गए और उन्होंने प्रहलाद से उनका शील मांग लिया। प्रहलाद ने पूछा, मेरा चरित्र लेकर तुम्हारा कार्य हो जाएगा। भिक्षुक का रूप धारण किए इंद्र ने कहा ‘हां’। प्रहलाद ने उसे अपना चरित्र दान दे दिया। चरित्र का दान करते ही प्रहलाद के शरीर से एक प्रकाशमय आकृति निकली और इंद्र के शरीर में समा गई। ये प्रकाशमय आकृति शौर्य थी। उसने प्रहलाद से कहा  मैं आपका शौर्य हूं। 

प्रहलाद ने कहा, 'चरित्र के बिना मेरा आपके शरीर में क्या काम। इसी तरह एक-एक कर प्रहलाद के शरीर से कई ज्योतिपुंज निकलकर इंद्र के शरीर में समा गई। इनमें वैभव, प्रतिष्ठा, सपंदा, सत्य, सदाचार और बल थे। आखिर में राजश्री भी प्रहलाद के शरीर को छोड़ इंद्र के शरीर में समा गई। इस तरह प्रहलाद से केवल चरित्र मांगकर इंद्र ने उनसे सबकुछ ले लिया।'

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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