Navratri 2018 : पांचवें द‍िन करें स्‍कंदमाता की पूजा, लगाएं ये भोग

आध्यात्म
Updated Mar 21, 2018 | 16:59 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

मां स्‍कंदमाता को भगवान कार्त‍िकेय की माता माना जाता है। नवरात्रि में पांचवें दिन इस व‍िधि से मां के इस स्‍वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है -

मां स्‍कंदमाता 

नई द‍िल्‍ली : Chaitra Navratri 2018 के पांचवें द‍िन यानी 22 मार्च को मां स्‍कंदमाता की पूजा होगी। भगवान स्‍कंद की मां होने के नाते इनको ये नाम द‍िया गया है। भगवान कार्त‍िकेय का दूसरा नाम स्‍कंद है। स्कंदमाता को पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली कहा जाता है। माना जाता है कि सच्‍चे मन से इनकी पूजा की जाए तो फलस्‍वरूप मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। 
 
पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में कार्तिकेय यानी स्‍कंद कुमार देवताओं के सेनापति बने थे और देवताओं को विजय दिलाई थी। इन्हें कुमार, शक्तिधर और मयूर पर सवार होने के कारण मयूरवाहन भी कहा जाता है। इनकी मां यानी स्‍कंदमाता के स्‍वरूप की बात करें तो इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र यानी सफेद है। यही वजह है क‍ि उपसाना अक्‍सर सफेद वस्‍त्र धारण कर की जाती है। स्‍कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। वहीं यह सिंह की सवारी करती हैं। 
 
शास्त्रों में स्‍कंदमाता की पूजा का काफी महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। कहते हैं क‍ि कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। 

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कैसे करें स्‍कंदमाता की पूजा 
वास्तुशास्त्र के अनुसार देवी स्कंदमाता की दिशा उत्तर है। दुर्गा सप्तशती में इन्हें चेतान्सी कहा है। स्कंदमाता विद्वानों व सेवकों की जननी है। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय है दिन का दूसरा प्रहर। इन्हें चंपा के फूल, कांच की हरी चूडियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है। देवी स्कंदमाता की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है, जिनकी आजीविका का संबंध मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से है। इनकी उपासना से पारिवारिक शांति आती है, रोगों से मुक्ति मिलती है तथा समस्त व्याधियों का अंत होता है।

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स्‍कंदमाता को लगाएं क्‍या भोग 
नवरात्र के पांचवें द‍िन स्‍कंदमाता की पूजा पूरी श्रद्धा के साथ करें। इस दौरान श्‍वेत वस्‍त्र धारण करने से मां जल्‍दी प्रसन्‍न होती है। यह उनका प्र‍िय रंग माना जाता है। वहीं इस दिन पूजा करके मां दुर्गा के स्‍कंदमाता रूप को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस उपाय से मेधा प्रखर होती है और आगे बढ़ने की राह खुलती है। 

मां स्कंदमाता का मंत्र
सिंह वाहिनी मां की आराधना इस मंत्र के उच्चारण के साथ की जाती है - 

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

साथ ही यह मंत्र भी पढ़ा जाता है - 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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नवरात्र में जलाएं अखंड ज्‍योति 
नवरात्रों में नौ दिनों तक देवी माता जी का विशेष श्रृंगार करना चाहिए। चोला, फूलों की माला, हार और नए कपड़ों से माता जी का श्रृंगार किया जाता है। वहीं नवरात्र में देशी गाय के घी से अखंड ज्योति जलाना मां भगवती को बहुत प्रसन्न करने वाला कार्य होता है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से माता की अखंड ज्योति पूजा स्थान पर जरूर जलानी चाहिए।

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