Navratri 2018 : चौथे द‍िन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, हर भय करती हैं दूर

आध्यात्म
Updated Mar 20, 2018 | 16:28 IST | Medha Chawla

Navratri के चौथे द‍िन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इन्‍हें आद‍ि शक्‍त‍ि माना जाता है। जानें ये है इनकी पूजा की व‍िध‍ि और मंत्र -

नई द‍िल्‍ली : Navratri के नौ द‍िन में मां के अलग-अलग 9 रूप सामने आते हैं और हर द‍िन उनके एक रूप की पूजा होती है। ऐसे में नवरात्र‍ि का चौथा द‍िन मां कूष्‍मांडा को समर्पित है। इस द‍िन मां के इस स्‍वरूप का पूजन होता है। बता दें कि देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं। अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत भरा कलश, चक्र और गदा व माला लिए हुए हैं। माता की वर मुद्रा भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाली होती है।

मां कूष्मांडा को शक्‍त‍ि का चौथा स्वरूप माना जाता है, जो सूर्य के समान तेजस्वी हैं। मां के स्वरूप की व्याख्या कुछ इस प्रकार है, देवी कुष्मांडा व उनकी आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं, उनकी मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। 

मां कूष्मांडा को ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।

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मां कूष्मांडा का मंत्र 
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इसका अर्थ है - हे मां! सर्वत्र विराजमान और कूष्मांडा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

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मां कूष्मांडा की पूजा विधि
सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। पूजा की विधि शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्मांडा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न,  आसन, पाद्य,  अध्र्य,  आचमन,  स्नान,  वस्त्र,  सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

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मां कूष्‍मांडा का विशेष प्रसाद क्या है? 
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो मां को उनका उनका प्रिय भोग अर्पित करने से मां कूष्‍मांडा बहुत प्रसन्न होती हैं.... 

  • मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं
  • इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं
  • इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी

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