Parsva Ekadashi vrat katha: पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी की कथा ह‍िंदी में, व्रत पूर्ण करने के ल‍िए यहां पढ़ें

Parsva Ekadashi vrat katha, Parsva Ekadashi ki pauranik kahani : पार्श्व एकादशी की व्रत कथा से जानें इसका महत्‍व। हिंदू शास्त्र में इसे जलझूलनी या डोल ग्यारस एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है।

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पार्श्व एकादशी व्रत कथा (Pic : iStock) 
मुख्य बातें
  • पार्श्व एकादशी में भगवान विष्णु की जाती है पूजा
  • पार्श्व एकादशी करने से जीवन के सभी पाप हटने की है मान्‍यता
  • माना जाता है क‍ि इस व्रत को करने से हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है

Parsva Ekadashi katha 2021: हिंदू शास्त्र में हर एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित की जाती है। पार्श्व एकादशी भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है। इस साल यह 17 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के भक्त उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है, कि इस व्रत को करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होकर यश को प्राप्त होता हैं। इस व्रत की कथा पढ़ने या सुनने से हजारों अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। यदि आप भी भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते है, तो 17 सितंबर को पार्श्व एकादशी जरूर करें। यह व्रत आपकी सभी मनोकामना को शीघ्र पूर्ण कर देगा। यहां आप पार्श्व एकादशी व्रत की पूरी कथा देखकर पढ़ सकते हैं।

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शास्त्र के अनुसार जब युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु आप आप मुझे पापों को नष्ट करने वाला कोई कथा सुनाएं। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन मैं तुम्हें एक ऐसी कथा सुनाता हूं, जिसको सुनने या पढ़ने से व्यक्ति के पाप क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं। तब उन्होंने कथा सुनाया। त्रेतायुग युग में बलि नाम का एक दैत्य राजा था। वह भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। बलि हमेशा कई प्रकार के वेद सूक्तों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना किया करता था।

वह  हमेशा ब्राह्मणों का पूजन और बड़े-बड़े यज्ञ किया करता था। लेकिन इंद्र से दुश्मनी होने के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था। इस कारण से सभी देवता नाराज होकर भगवान के पास आए। वहां वृहस्पति सहित इंद्र देवता भगवान के पास नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा पूजन एंवम् स्तुति करने लगें। उसी वक्त भगवान श्री कृष्ण वामन रूप धारण करके पांचवा अवतार लिए।

 भगवान श्री कृष्ण ने अपने इस रूप के तेज से राजा बलि को जीत लिया। तब यह बात सुनकर राजा युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से बोले, हे जनार्दन आपने वामन रूप धारण करके महाबली दायित्व को किस प्रकार जीत लिया। तब भगवान श्रीकृष्ण कहें, कि मैंने राजा बलि से वामन रूप धारण कर तीन पग भूमि की याचना की।

तब राजा बलि ब्राह्मण की तुच्छ याचना समझकर इस वचन को पूरा करने के लिए तैयार हो गया। यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर दिया। यह देख कर सभी देवतागण भगवान श्री कृष्ण की वेद शब्दों से प्रार्थना करने लगें।

 तब भगवान श्री कृष्ण ने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा हे राजन एक पग से पृथ्वी दूसरे पग से स्वर्गलोक पूरा हो गया, अब मैं तीसरा पग कहां रखूं। यह सुनकर राजा बलि भगवान को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर दे दिया। जिस वजह से राजा बलि पताल लोक को चला गया। बाद में बिनती और प्रार्थना कर राजा बलि ने देवताओं से क्षमा मांंगी। यह देखकर भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होकर उसे वचन दिए कि मैं सदैव तुम्हारे पास ही रहूंगा।
 

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