बैल वाहन की सवारी करने वाली मां शैलपुत्री का नाम वृषारूढ़ा और उमा भी है। हिमालय राज कि पुत्री मां शैलपुत्री का जन्म सती के रूप में हुआ था। उन्होंने अग्निकुंड में भगवान शिव के अपमान से दुखी हो अपने शरीर को स्वाहा कर दिया था और यही कारण है मां का एक नाम सती भी है।
नवरात्र में पहले दिन मां की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायी होता है। मान्यता है कि जो भी मां की पूजा करता है उसका चंद्र दोष खत्म हो जाता है। नवरात्रि के पहले दिन आइए जानें कि मां की पूजा कैसे करें और पूजा का क्या महत्व है। साथ ही माता की पूजा की विधि, कथा और मंत्र के साथ आरती के बारे में भी विस्तार से जानें।
मां शैलपुत्री की पूजा से वैवाहिक जीवन होता है सुखमय
शैल से जन्म होने के कारण ही मां का नाम शैलपुत्री पड़ा। मां की पूजा करने से घर में सौभाग्य का प्राप्ति तो होती ही है वैवाहिक जीवन भी सुखमय होता है। मां की पूजा जीवन में स्थिरता लाता है। मां शैलपुत्री का विधिवत पूजन करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्रमा के सभी दोष खत्म हो जाते हैं।
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
चौकी पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करे और इसे बाद कलश कि स्थापना करें। कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर स्वास्तिक जरूर बनाएं। इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:’ मंत्र का जाप करें और फिर सफेद फूल मां को अर्पित करें। इसके बाद मां को सफेद रंग का भोग लगाएं। जैसे खीर या मिठाई आदि। अब माता कि कथा सुने और आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जरूर जलाएं।
मां शैलपुत्री की कथा
एक बार प्रजापति दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोनज किया। यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव को छोड़ कर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। मां सती को जब ये पता चला कि पिता जी ने यज्ञ का आयोजन किया है तो उनका भी मन वहां जाने को हुआ। उन्होंने भगवान शिव को मन की बात बताई तो भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि, लगता है प्रजापति दक्ष उनसे रुष्ट हैं क्योंकि उन्होंने कोई आमंत्रण उन्हें नहीं भेजा, लेकिन माता सती ने भगवान शिव की बात से सहमत नहीं हईं और जिद्द कर के वह पिता के घर चली गईं। जब वह अपने पिता के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि सब उन्हें देखकर अनदेखा कर दिए और कोई उनसे बात तक नहीं किया। सिर्फ उनकी माता ने ही उन्हें प्रेम से गले लगाया । जबकि उनकी बहने ने उनपर तंज कसे और उनका उपहास भी किया। सबका ऐसा व्यवहार देख कर माता सती को बहुत आघात लगा और देखा कि शिव जी के लिए सबके मन में द्वेश है। राजा दक्ष ने भगवान शिव का तिस्कार किया और उनके प्रति अपशब्द भी कहे। यह सुनकर माता सती को यह अहसास हो गया कि उन्होंने भगवान शिव की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी। वह अपने पति की भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर सकी और उन्होंने यज्ञ कुंड की अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया। भगवान शिव को यह ज्ञात होते ही वह इतने क्रोधित हुए कि सारा यज्ञ ही खंडित कर दिया। इसके बाद माता सती ने अपना दूसरा जन्म शैलराज हिमालय के यहां पर लिया।
मां शैलपुत्री के मंत्र
1. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
3. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
4. या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मां
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
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