शीतला अष्टमी या बसोड़ा: लगता है बासी खाने का भोग, ऐसे लोग न करें भूल से भी पूजन

आध्यात्म
Updated Mar 07, 2018 | 19:32 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

होली के आठ द‍िन के बाद शीतला माता की खास पूजा की जाती है। हिंदू व्रतों में ये केवल एक ही ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है।

Sheetla Mata  |  तस्वीर साभार: BCCL

नई दिल्ली: चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को शीतला माता की पूजा की जाती है। इस बार शीतला अष्टमी 9 मार्च 2018 को है। इस पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक मां शीतला की आराधना कई तरह के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाती है। ऐसी मान्यता है माता शीतला का व्रत रखने से तमाम तरह की बीमारियां दूर हो जाती है। साथ ही व्यक्ति पूरे साल चर्म रोग तथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहता है।

देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है। 

शीतला अष्टमी यानी बसौड़ा पूजा
शीतला अष्टमी को बसौड़ा पूजा भी कहा जाता है। ये होली पर्व के ठीक आठ दिनों बाद मनाई जाती है यानी अष्टमी को। इस साल शीतला अष्टमी 9 मार्च को पड़ रही है। हिंदू व्रतों में ये केवल एक ही ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है। इसलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं जिसका मतलब होता है बासी भोजन। शीतला माता के हाथ में झाडू और कलश होता है। माता के हाथ में झाडू होने का मतलब लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करने से होता है।

हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। यह पर्व एक तरफ से लोगों को सफाई के प्रति जागरूक भी करता है कि व्यक्ति ना सिर्फ खुद को स्वच्छ रखे बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी साफ , सुंदर और स्वच्छ रखे।

Also Read : मां दुर्गा के 15 प्रस‍िद्ध मंद‍िर, नवरात्र‍ि में जरूर करें दर्शन

बासी भोजन का लगाया जाता है भोग 
माता शीतला देवी की उपासना से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग तैयार किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता को प्रसाद चढ़ाया जाता है। शीतला अष्टमी पूजा का शुभ मुहुर्त सुबह 6 बजकर 21 मिनट से शाम 6 बजकर 41 मिनट तक है। ऐसी मान्यता है अगर किसी भी व्यक्ति को जब चेचक निकल आता है तो घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है। नियम के अनुसार माता भगवती की पूजा होती है। इसके तहत कुछ नियमों पालन भी करना होता है ताकि मरीज को जल्द आराम मिल सकें।

किसे पूजा नहीं करनी चाहिए ?
शीतला अष्टमी को लेकर ऐसी मान्यता है कि महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, उन्हें हर प्रकार के रोगों से दूर रखने के लिए और घर में सुख समृद्धि के लिए शीतला माता की पूजा करती हैं।कहा जाता है कि जिस घर में शुद्ध मन से शीतला माता की पूजा होती है वहां हर प्रकार से सुख समृद्धि बनी रहती है। बताया जाता है कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे ये पूजा नहीं करनी चाहिए। 

Also Read : जानें कौन होते हैं शंकराचार्य, क्‍या है भारत में पीठ का स्‍वरूप

शीतला देवी की पूजा का शुभ मुहूर्त
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतला देवी की उपासना से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06: 21 से शाम 06: 41 तक रहेगा। अष्टमी तिथि 9 मार्च यानी शुक्रवार सुबह 3:44 से शुरू होगी जो शनिवार सुबह 6 बजे तक रहेगी।

कैसे करनी चाहिए पूजा 
शीतल माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई लोग इस दिन शीतला माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा भी करते हैं। पूजा के बाद बसौड़ा व्रत कथा कही जाती है।  पूजा के बाद परिवार के सभी लोगों को प्रसाद देकर एक दिन पहले बनाया गया बासी भोजन खाया जाता है। स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।

शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। तभी से शीतला माता की अष्टमी को पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। कई लोग इस दिन मां का आशीर्वाद पाने और पूरे साल बीमारियों से दूर रखने के लिए उपवास भी करते हैं।  

Also Read : यदि लाइफस्टाइल में हैं ये बुरी आदतें, तो लग सकता है ग्रहदोष

शीतलाष्टक में वर्णित है शीतला देवी की महिमा 
अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है जो इस प्रकार है- 
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्। । 

पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद बसौड़ा को बांटा जाता है इस प्रकार पूजन समाप्त होने पर भक्त माता से सुख शांति की कामना करता है। 

धर्म व अन्‍य विषयों की Hindi News के लिए आएं Times Now Hindi पर। हर अपडेट के लिए जुड़ें हमारे FACEBOOK पेज के साथ। 

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल

अगली खबर