जो भी सुन ले मां लक्ष्मी की यह धन दायक आरती, खुल जाएंगे उसके किस्‍मत के दरवाजे

आध्यात्म
Updated May 02, 2019 | 16:38 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Friday Lakshmi Ji Aarti Ke Bhajan: मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हर कोई जतन करता है। मां धन प्रदाता ही नहीं यश और कीर्तिदाता भी हैं। इसलिए माता की पूजा के साथ साथ भजन और आरती सुनना भी जरूरी है।

Lakshmi Ji Aarti Bhajan
Lakshmi Ji Aarti Bhajan 

Lakshmi Ji Aarti Bhajan: धन की देवी मां लक्ष्‍मी की कृपा जिस भी व्‍यक्‍ति पर पड़ती है उसके जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं आती। मां लक्ष्‍मी अपने भक्‍तों को यश, पद तथा प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं। हम सभी जानते हैं कि बिना माता लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न किये जीवन में कभी खुशी नहीं आ सकती। मान्‍यता है क‍ि अगर शुक्रवार के दिन मां लक्ष्‍मी की व‍िध‍िवत पूजा की जाए तो ये मालामाल होने का वरदान देती हैं। 

शुक्रवार को मां लक्ष्‍मी का दिन होता है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है। यदि इस दिन मां लक्ष्‍मी को लाल रंग की चुनरी चढ़ाई जाए और विधि से पूजा की जाए तो ना सिर्फ आपकी जिंदगी में बल्‍कि आपके घर में भी खुशी की बरसात हो जाएगी। यही नहीं इस दिन गरीबों में अन्न तथा भोजन का दान भी करना चाहिये। वहीं बहुत से लोग शुक्रवार के दिन श्री सूक्त, गीता, भागवत, श्री रामचरितमानस, श्री विष्णुसहस्त्रनाम इत्यादि धार्मिक पुस्तकों का दान भी करते हैं। शुक्रवार को मां लक्ष्‍मी की आरती सुनने से मन भी पावन होता है और घर से दरिद्रता भी दूर होती है। अब आइये सुनते हैं मां लक्ष्‍मी के स्‍पेश भजन और आरती.... 

शुक्रवार स्पेशल भजन

श्री महालक्ष्मीची आरती 
जय देवी जय देवी जय महालक्ष्मी।
वससी व्यापकरुपे तू स्थूलसूक्ष्मी॥

करवीरपुरवासिनी सुरवरमुनिमाता।
पुरहरवरदायिनी मुरहरप्रियकान्ता।
कमलाकारें जठरी जन्मविला धाता।
सहस्त्रवदनी भूधर न पुरे गुण गातां॥
जय देवी जय देवी...॥

मातुलिंग गदा खेटक रविकिरणीं।
झळके हाटकवाटी पीयुषरसपाणी।
माणिकरसना सुरंगवसना मृगनयनी।
शशिकरवदना राजस मदनाची जननी॥
जय देवी जय देवी...॥

तारा शक्ति अगम्या शिवभजकां गौरी।
सांख्य म्हणती प्रकृती निर्गुण निर्धारी।
गायत्री निजबीजा निगमागम सारी।
प्रगटे पद्मावती निजधर्माचारी॥
जय देवी जय देवी...॥

अमृतभरिते सरिते अघदुरितें वारीं।
मारी दुर्घट असुरां भवदुस्तर तारीं।
वारी मायापटल प्रणमत परिवारी।
हें रुप चिद्रूप दावी निर्धारी॥
जय देवी जय देवी...॥

चतुराननें कुश्चित कर्मांच्या ओळी।
लिहिल्या असतिल माते माझे निजभाळी।
पुसोनि चरणातळी पदसुमने क्षाळी।
मुक्तेश्वर नागर क्षीरसागरबाळी॥
जय देवी जय देवी...॥

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