योग, नाथ संप्रदाय और गोरक्षनाथ मंदिर : शास्त्रों से निकलकर जन-जन तक पहुंची साधना  

आध्यात्म
आलोक राव
Updated Jun 20, 2021 | 21:56 IST

योग को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए गोरक्षनाथ मंदिर की बड़ी भूमिका है। योग का प्रचार-प्रसार करने के लिए मंदिर के पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ने कई कदम उठाए हैं। इनमें हर साल योग शिविर प्रमुख है।

Yoga, Nath Sampradaya and Gorakshnath Mandir
योग, नाथ संप्रदाय और गोरखनाथ मंदिर। तस्वीर-गोरक्षनाथ मंदिर फेसबुक  
मुख्य बातें
  • नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है गोरक्षनाथ मंदिर, इस पंथ की मुख्य देन योग है
  • महायोगी गुरु गोरक्षनाथ का कहना है कि योग से सभी विकार दूर हो जाते हैं
  • योग को प्रचारित और प्रसारित करने में महंत योगी आदित्यनाथ की है अहम भूमिका

शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने और उनके बीच संतुलन लाने में योग बड़ी भूमिका निभाता आया है। योग सदियों से भारतीय साधना परंपरा का हिस्सा रहा है। सभ्यताओं की शुरुआत से यह मनुष्यों के बीच किसी न किसी रूप में रहा है। वेद, उपनिषदों में इसका जिक्र मिलता है। आगे चलकर महर्षि पतंजलि ने योग को एक व्यवस्थित रूप दिया। नाथ पंथ में योग की एक विस्तृत परंपरा रही है, साधना के रूप में इस पर विशेष जोर दिया गया है। नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने योग को मनुष्य की जीवन पद्धति का अंग बताया है। उन्होंने कहा है कि योग से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त होती है। नाथ पंथ से पहले योग की शास्त्र परंपरा मिलती है लेकिन इसे जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय महायोगी गुरु गोरक्षनाथ और उनके नाथ पंथ को जाता है।

नाथ संप्रदाय की मुख्य देन है योग 
गुरु गोरक्षनाथ द्वारा प्रवर्तित नाथपंथ की सर्वोच्च सिद्धपीठ एवं मंदिर गोरखपुर में स्थित है। इस नाथ संप्रदाय की मुख्य देन योग है। आज जितने भी आसन, प्रणायाम, ध्यान प्रचलित हैं इन सभी पर आदि गुरु मत्स्येंद्रनाथ, गोरक्षनाथ, नागनाथ सहित 84 सिद्धों के आसनों की छाप एवं प्रेरणा दिखाई देती है। प्राचीन काल से गोरखपुर नाथ पंथ का केंद्र रहा है। यहां योग पहले केवल साधुओं तक सीमित था लेकिन दिग्विजयनाथ जी महाराज के समय इसका प्रचार-प्रसार जनता के बीच होना शुरू हुआ। आगे योग से लोगों को जोड़ने की इस परंपरा को उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने आगे बढ़ाया और फिर योगी आदित्यनाथ ने इस योग साधना को और महत्व देते हुए उसे नई ऊंचाई प्रदान की। 

कई देशों में नाथ संप्रदाय का प्रभाव, कई राजा रहे गोरक्षनाथ के अनुयायी
नाथ पंथ और योग के बारे में ओडिशा के केंद्रपाड़ा स्थित नाथ संप्रदाय मठ के योगेश्वर महंत शिवनाथ कहते हैं कि कबीर, तुलसी, गुरु नानक देव से पहले नाथ संप्रदाय है। इस नाथ पंथ का प्रभाव समग्र भारत वर्ष पर था। देश के बाहर अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, भूटान इन देशों पर नाथ संप्रदाय का प्रभाव रहा है। अभी रूस, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया सहित यूरोप के अन्य देशों में योग का प्रचार ज्यादा हो रहा है। दो साल तक लंदन में योग का प्रचार-प्रसार करने वाले महंत शिवनाथ का कहना है कि गुरु गोरक्षनाथ और नाथ संप्रदाय का असर देश के कई राजा-रजवाड़ों पर था। गुरु गोरक्षनाथ की योग, साधना पद्धति और दर्शन से प्रभावित होकर कई राजा उनके शिष्य बने। नेपाल के माहाराजा पृथ्वी नारायण शाह गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य थे। चित्तौड़गढ़ के बप्पा रावल, बंगाल के राजा गोपीचंद, उज्जैन के राजा भर्तृहरि, मेवाड़ के राजा मान सिंह, जैसलमेर के भाटी राजा सहित ओडिशा के कई राजा नाथ पंथ के अनुयायी रहे हैं। 

योग, वेदांत के बहुत बड़े विद्वान थे महंत अवैद्यनाथ   
योग के क्षेत्र में नाथ संप्रदाय की देन पर अपनी बात रखते हुए महंत शिवनाथ ने आगे बताया कि महंत अवैद्यनाथ जी के समय उनका ज्यादातर समय गोरखपुर में बीता। उस समय गोरक्षनाथ मंदिर में प्रतिदिन योग और ध्यान की कक्षाएं चलती थीं। 1986 में हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान महंत अवैद्यनाथ ने गोरखपुर में एक महीने के योग शिविर लगाने की घोषणा की। गोरखनाथ मंदिर की ओर से आयोजित इस योग शिविर में हरिद्वार एवं अन्य जगहों से बड़ी संख्या में साधु सम्मिलित हुए। महंत अवैद्यनाथ जी महाराज योग, वेदांत के बहुत बड़े विद्वान थे। वह साधुओं के लिए खुद योग की कक्षाएं लेते थे। 

योग के प्रसार के लिए योगी आदित्यनाथ ने उठाए कई कदम
योग के प्रचार-प्रसार में गोरक्षनाथ मंदिर के योगदान का जिक्र करते हुए महंत शिवनाथ ने कहा कि गुरु अवैद्यनाथ के बाद जब योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत बने तो उन्होंने महायोगी गोरक्षनाथ योग संस्थान स्थापित किया। एक रजिस्टर्ड संस्था के रूप में यह संस्थान मंदिर में हर साल साप्ताहिक योग साधना शिविर लगता है। इस योग साधना कार्यक्रम का आयोजन हर साल योग दिवस (21 जून) के समय होता है। हालांकि, कोरोना संकट की वजह से योग शिविर का आयोजन ऑनलाइन हुआ है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के अध्यापक इस शिविर में योग पर शिक्षा देते हैं। योग शिविर में गोरक्षनाथ संस्कृति विद्यापीठ के अध्यापक भी कक्षाएं लेते हैं। 

गोरक्षनाथ शोध संस्थान की स्थापना
योगेश्वर शिवनाथ आगे कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने योग के प्रसार के लिए एक और बड़ा काम किया। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में महायोगी गोरक्षनाथ शोध संस्थान स्थापित किया। इस शोध संस्थान में दो साल पहले योग पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमें देश और दुनिया के योग के विद्वान एवं विशेषज्ञ शामिल हुए। आम जन तक योग पहुंचाने के लिए गोरक्षनाथ मंदिर लगातार सक्रिय है और वह इससे जुड़ी गतिविधियां करता आ रहा है। दुनिया भर में नाथ संप्रदाय के जितने भी मठ और मंदिर हैं वहां भी योग का प्रचार चल रहा है। 

योगी आदित्यनाथ जी खुद एक बड़े योगी हैं
महंत शिवनाथ बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ जी खुद एक बड़े योगी हैं। वह बहुत साधना करते हैं। हर रोज रात 3 बजे महंत आदित्यनाथ की योग साधना की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वह हर रोज दो घंटा आसन, प्राणायाम और ध्यान करते हैं। योगी जी ने हठयोग और राजयोग के ऊपर कई पुस्तकें लिखी हैं। योग के प्रचार के लिए गोरक्षनाथ मंदिर की तरफ से बहुत सारी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें सिद्ध सिद्धांत पद्धति, हठयोग प्रदीपिका, शिव संहिता, गोरख पद्धति, गोरक्ष संहिता और योग बीज प्रमुख हैं। मंदिर की तरफ से प्रत्येक महीने योगवाणी नाम से पत्रिका निकाली जाती है जिसके संपादक मंदिर के पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ हैं।  

नाथ संप्रदाय में शरीर की साधना पर ज्यादा जोर 
उन्होंने कहा, 'योग के नाम पर आज जो भी साधनाएं चल रही हैं वे सभी हठयोग में पहले से मौजूद हैं। योग के जितने आसन हैं उसके प्रणेता मत्स्येंद्रनाथ और गोरक्षनाथ हैं। गोरक्षनाथ के नाम पर गोरक्षासन और मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर मत्स्येंद्रासन पाया जाता है। महर्षि पतंजलि ने कभी यह नहीं कहा कि आसन, प्राणायाम करने से रोग दूर होता है बल्कि महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने बताया कि आसन, प्राणायाम से रोग दूर होता है। पतंजलि योग मानसिक साधना धारणा, ध्यान, समाधि के ऊपर जोर देता है जबकि गोरक्षनाथ शरीर की साधना पर ज्यादा जोर देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि किसी भी साधना के लिए पहले शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है।'

हठयोग सिद्धि के लक्षण
महंत शिवनाथ ने कहा, 'नाथ पंथ में शारीरिक साधना के बाद मन की शांति की बात की जाती है। मानसिक शांति के लिए ध्यान पर जोर दिया गया है और आत्मा के लिए समाधि। गोरक्षनाथ जी ने कहा है कि साधना से शारीरिक शुष्ठता, ध्यान से मानसिक शांति और समाधि से आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति होती है। हठयोग सिद्धि के लक्षण के रूप में बताया गया है कि हठयोग करने पर शरीर पतला (सामान्य) हो जाता है। मुखमंडल में प्रसन्नता छा जाती है। शब्दों में सौष्ठव आ जाता है। नेत्र में तेजस्विता आती है। रोग दूर होता है। वीर्य पर नियंत्रण मिलता है। शरीर की नाड़ियां शुद्ध हो जाती हैं।'

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