छठ पूजा में चारों दिन छठ मैया की आरती करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इसके बाद ही ये पूजा सफल मानी जाती है। छठ मैया भगवान सूर्य की बहन मानी गई हैं। छठ की पूजा साल में दो बार होती हैं, लेकिन कार्तिक माह में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की पष्ठी यानी छठ बहुत ही व्यापक होती है जबकि चैत माह में पड़ने वाले छठ पूजा छोटे रूप में ही संपन्न हो जाती है। पौराणिक कथाओं में में छठी मैया को बेहद महत्वपूर्ण और संतान प्रदान करने वाली माना गया है। छठ पूजा पारिवारिक सुख-समृद्घि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के साथ संतान की कामना को पूरा करने के लिए ही होती है। इस पर्व में छठी मैया की मान-सम्मान के लिए व्रतीजन तपस्वी सा जीवन पूरे चार दिन जीते हैं और मां की आरती कर मां को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
छठ पूजा में सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग होता है। सूप और टोकरी में प्रसाद आदि रखे जाते हैं। नदी या तालाब किनारे वेदी बना कर वहां पूजा होती है। उसके बाद आधे शरीर तक पानी में खड़े हो कर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी के कारण ही इस व्रत का नाम छठ पड़ा है। खास बात ये है कि ये व्रत केवल महिलाएं ही नहीं पुरुष भी करते हैं और जब मनौती पूरी होती है तो उस साल का व्रत और पूजा बहुत ही खास रहती है। 36 घंटे का यह व्रत होता है जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता है। छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है। लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं।
छठ पूजा को तभी सफल और पूर्ण माना जाता है जब छठ मईया की आरती की जाती है। वैसे भी कोई भी पूजा बिना आरती के पूरी नहीं होती। तो आइए, छठ मईया की आरती करें।
छठ मईया की आरती
जय छठी मईया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
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