नवरात्रि में मां दुर्गा के बहुत से प्राचीन मंदिर हैं, जहां पूजा करने की परंपरा बहुत ही अलग होती है। वहीं वहीं कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां माता को प्रसन्न करने के लिए उनकी मनपसंद मिठाईयां, फूल और नवपत्रिका चढ़ाई जाती है, लेकिन राजस्थान में दुर्गा जी का एक मंदिर ऐसा है, जहां मां को प्रसन्न करने के लिए मदिरा का भोग लगाया जाता है। मदिरा का भोग लगाने के बाद भक्तों में इसे प्रसाद के रूप में बांटा भी जाता है।
मान्यता है कि वैसे तो पूरे साल यहां मां को मदिरा का भोग लगाया जाता है लेकिन नवरात्रि में इस भोग को चढ़ाने का विशेष आर्शीवाद मिलता है। भक्तों की सारी समस्याएं दूर कर मां उन्हें सुख-समृद्धि का आर्शीवाद देती हैं। यहां का प्रसाद भी मदिरा है और उसको ग्रहण करना भी जरूरी होता है।
ढाई प्याला चढ़ाया जाती है मदिरा
राजस्थान के नागौर जिले में स्थित मां दुर्गा के इस मंदिर में नवरात्रि में सबसे ज्यादा भीड़ होती है। मां भुवाल और काली माता के मंदिर में मान्यता है कि देवी को ढाई प्याला मदिरा का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद मदिरा मंदिर में स्थित भैरव जी को चढ़ाया जाता है। माता पर चढ़ी मदिरा को प्रसाद स्वरूप भक्तों में बांटा जाता है।
डाकुओं ने करवाया था मंदिर का निर्माण मंदिर में मौजूद शिलालेख बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1380 को हुआ था। इस मंदिर का निर्माण को लेकर मतभेद है किसी का मानना है कि मंदिर एक राज ने बनवाया तो कोई इसे डाकुओं द्वारा मानता है। डाकू मंदिर में देवी मां का आर्शीवाद लेकर ही निकलते थे। मंदिर के चारों और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मंदिर के ऊपरी भाग में एक गुप्त कक्ष भी है जिसे गुफा भी कहा जाता है।
देवी दुर्गा के दो स्वरूप की होती है पूजा मंदिर में माता काली व ब्राह्मणी की पूजा की जाती है। यह पहला मंदिर है जहां मां दुर्गा के दो स्वरूपों की प्रतिमा एक साथ स्थापित है। यहां ब्रह्माणी देवी को भोग में मिठाई और मां काली को शराब का भोग लगाया जाता है।
जान बचाने पर राजा ने कराया था माता के मंदिर का निर्माण
ऐसी मान्यता है कि भुवाल माता एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे पृथ्वी से प्रकट हुई क्योंकि एक राजा को डाकुओं ने घेर लिया था। मृत्यु के डर से राजा ने मां को याद किया तो मां प्रकट होकर सारे ही डाकुओं को भेड़-बकरी बना कर राजा की जान बचा दीं। तब राजा ने मां के मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया।
चांदी के प्याले में भरी जाती है मदिरा माता को चढ़ने वाली मदिरा को पुजारी चांदी का ढाई प्याले में भरते हैं और माता के मुख पर स्पर्श कराते हैं। भोग के दौरान माता को देखना वर्जित माना गया है। कहा जाता है कि चांदी के प्याले में भरी मदिरा पूरी खत्म हो जाती है। यानी मां उसे ग्रहण कर लेती हैं।
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