दशहरे के दिन शमी पूजा का विधान है। हमारे शास्त्रों में इस वृक्ष को आस्था का केन्द्र माना गया है। मान्यता है कि इस वृक्ष को अगर घर के दाहिनी ओर लगाकर शाम से समय सरसों के तेल का दीपक जलाकर पूजन किया जाए तो घर में हमेशा बरकत बनी रहती है और खासतौर शनि देव की कृपा मिलती है।
वैसे श्रीराम से एक वाकया जुड़ा होने की वजह से शमी की पूजा का खास दिन विजयादशमी को रखा गया है। इस दिन तमाम जगहों पर इस वृक्ष की विधिवत पूजा की जाती है।
क्यों होती है विजयादशमी पर शमि की पूजा
पौराणिक मान्यताओं में शमी का वृक्ष बेहद मंगलकारी माना गया है। ये पेड़ नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। कहा जाता है कि लंका पर विजय पाने के बाद श्रीराम ने शमी का पूजन किया था। वहीं इस वृक्ष में शनिदेव का वास माना गया है। गणेश जी को भी ये पेड़ प्रिय है। इसके अलावा, नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है।
कैसे करें विजयादशमी पर शमि की पूजा
इस दौरान प्रार्थना कर शमी वृक्ष की कुछ पत्तियां तोड़े और उन्हें घर के पूजाघर में रख दें। लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपाड़ी के साथ इन पत्तियों को बांध लें। इसके बाद इस पोटली को गुरु या बुजुर्ग से प्राप्त करें और प्रभु राम की परिक्रमा करें।
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।
जानें शमी पूजन से जुड़ी ये कथा
विजयादशमी और शमी से एक जुड़ी पौराणिक कथा भी प्रचलित है। महर्षि वर्तन्तु के शिष्य कौत्स थे। शिक्षा पूरी होने के बाद गुरुदक्षिणा के रूप में उन्होंने कौत्स से 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की मांग की थी। इसके लिए कौत्स महाराज रघु के पास जाकर उनसे स्वर्ण मुद्रा की मांग करते हैं। खजाना खाली होने की वजह से राजा ने तीन दिन का समय मांग कर धन जुटाने का उपाय खोजते हैं। वहीं राजा स्वर्गलोक पर आक्रमण करके से शाही खजाने को भरना चाहता था। राजा के इस विचार से घबराए देवराज इंद्र ने अपने कोषाध्यक्ष कुबेर को स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा का आदेश दिया। कुबेर ने आदेश के अनुसार शमि के माध्यम से ये वर्षा करवा दी। माना जाता कि वो विजयादशमी का दिन था।
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