Ashunya Shayan Vrat: चाहते हैं पत्नी की सलामती तो करें अशून्य शयन का व्रत, जानें पूजन विधि

व्रत-त्‍यौहार
Updated Oct 15, 2019 | 08:18 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Ashunya Shayan Vrat puja vidhi : जिस प्रकार स्त्रियां अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूषों को अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये अशून्य शयन का व्रत करना चाहिए।

Ashunya Shayan Vrat puja vidhi
Ashunya Shayan Vrat puja vidhi 
मुख्य बातें
  • भविष्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी हमेशा रहती हैं
  • इस व्रत को करने से घर में शांति रहती है
  • पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए इस हिन्दू धर्म में अशून्य शयन व्रत का बड़ा महत्‍व है

पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए इस हिन्दू धर्म में अशून्य शयन व्रत का बड़ा महत्‍व है। यह व्रत महिलाएं नहीं बल्‍कि पुरुष रखते हैं। इस व्रत को करने से स्त्री वैधव्य तथा पुरुष विधुर होने के पाप से मुक्त हो जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी हमेशा रहती हैं। दोनों ही दैवीय शक्ति को एक आदर्श जोड़ी माना जाता है। इनको आदर्श मान इनकी पूजा करने वाले जातक के दांपत्य जीवन में कभी खटास नहीं आती है।

इस व्रत को करने से घर में शांति रहती है। अशून्य शयन व्रत का उल्लेख विष्णुधर्मोत्तर के पृष्ठ- 71, मत्स्य पुराण के पृष्ठ- 2 से 20 तक, पद्मपुराण के पृष्ठ-24, विष्णुपुराण के पृष्ठ- 1 से 19 आदि में मिलता है। जिस तरह स्त्री को पुरुष की जरूरत होती है, उतनी ही जरूरत पुरुष को भी स्त्री की होती है। इसलिये यह व्रत करना पूरी तरह से वाजिम है। 

अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि

  • इस दिन प्रात: उठ कर सरगी खाएं और पूरे दिन व्रत रखें। 
  • शाम के समय श्री विष्‍णु के संग माता लक्ष्‍मी की पूजा करें। 
  • पूजा करते वक्‍त इस मंत्र का जप करें- लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा। शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।
  • मतलब 'हे वरद, जैसे आपकी शेषशय्या लक्ष्मी जी से कभी भी सूनी नहीं होती, वैसे ही मेरी शय्या अपनी पत्नी से सूनी न हो, यानि मैं उससे कभी अलग न रहूं।' 
  • शाम को चांद निकलने के बाद दही, चावल और फल का अर्घ्‍य चंद्रमा को चढ़ाएं और तृतीया के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाएं। ऐसा करने से आपकी पत्नी की उम्र लंबी होगी।

आज के दिन इस व्रत में शाम के समय चांद निकलने के बाद अक्षत, दही और फलों से अर्घ्य दिया जाता है और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। 

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