Tripindi Shradha: ज्योतिषाचार्य सुजीत जी महाराज के अनुसार पितृ दोष से बचने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कराना आवश्यक है। आपकी कुंडली में ग्रहों की चाहे जितने भी अच्छी स्थिति हो लेकिन यदि पितृ दोष है तो जीवन में तमाम प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे में घर में धन का खर्च बीमारियों में होने लगता है। संतान प्राप्ति में बाधा होती है तथा यदि संतान होती भी है तो प्रगति नहीं कर पाती तथा स्वास्थ्य से कष्ट उठाती है। इससे अचानक दुर्घटना के योग भी बनते हैं।
पितृ दोष शांति के लिए क्या करें-
प्रत्येक माह की अमावस्या की इसकी पूजा की जा सकती है लेकिन पितृ पक्ष इसके लिए सबसे बेहतर समय है।
पूजा विधि-
त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करके पूजन करने का विधान है। हमें जो आत्मा परेशान करती है उसके लिए अनदिष्ट गोत्र शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वह अज्ञात होती है। प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है। इस विधि को श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, फाल्गुन तथा वैशाख में 5, 8,11,13,14 तथा 30 में शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की तिथियों में भी किया जा सकता है। पितृ पक्ष इस पूजा के लिए सबसे उत्तम समय है।
तीन प्रेत योनियां-
तमोगुणी, रजोगुणी तथा सतोगुणी ये तीन प्रेत योनियां हैं। पिशाच तमोगुणी होते हैं। अंतरिक्ष में रजोगुणी तथा वायुमंडल में सतोगुणी पिशाच होते हैं । इन तीनों प्रकार की प्रेतयोनियों की पीड़ा को मिटाने के लिए पितृ पक्ष में त्रिपिंडी श्राद्ध बहुत आवश्यक है। आदित्यपुराण कहता है कि श्राद्ध न करने से पितर लोग अपने वंशजों को बहुत परेशान करते हैं। जो लोग कई वर्षों से श्राद्ध नहीं किये हैं उनके लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करवाना बहुत जरूरी है। प्रेतबाधा, गृहक्लेश, भूतबाधा,अशांति,बीमारी,अकाल मृत्यु व तमाम समस्याओं के निदान हेतु श्राद्ध पक्ष में त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
त्रिपिंडी पूजा से अतृप्त आत्मा को शांति, पुनर्जन्म या मोक्ष मिलता है-
जो आत्मा आपको परेशान कर रही थी अब त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाएगी। अपने कई जन्मों के कर्मों के हिसाब से उसका मनुष्य योनि में पुनर्जन्म होगा । यदि वह आत्मा बहुत पवित्र है तो मोक्ष भी पा सकती है।
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