आज यानि 3 जनवरी 2020 को बांदा अष्टमी जिसे शाकंभरी नवरात्रि भी कहते हैं की शुरुआत हो रही है। शाकंभरी नवरात्रि अष्टमी पौष मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक मनाई जाती है। गुप्त नवरात्रि की तरह शाकंभरी नवरात्रि का भी बहुत महत्व होता है। 'मां शाकंभरी' को आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है। देवीस्तुति नामक ग्यारहवें अध्याय में आदिशक्ति के जिन अवतारों का वर्णन मिलता है, उनमें सबसे अनूठा रूप है इन्ही का है। इन्हें चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रूप में भी दर्शाया गया है।
नवरात्री के इन 9 दिनों में मां शाकंभरी यानि मां अन्नपूर्णा की साधना की जाती है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ये शाक-सब्जियों की देवी हैं। मां के लिये पूरा ब्रह्मांड उनकी संतान है। वह किसी बच्चे को कष्ट में नहीं देख सकती इसलिये वह तुरंत ही उसकी रक्षा के लिए हर संभव प्रयत्न करती हैं। आइये यहां जानते हैं मां के इस अद्भुत रूप की कहानी और बांदा अष्टमी पूजन विधि के बारे में...
मां अन्नपूर्णा के अद्भुत रूप की कहानी-
बहुत पुराने समय की बात है जब एक बार पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा न होने की वजह से सूखा पड़ गया। धरती पर खाने को अन्न का दाना नहीं था। इस समस्या से परेशान हो कर मुनियों ने मिलकर आदिशक्ति का स्तवन किया। उनके कष्ट को देखकर मां अयोनिजा रूप में प्रकट हुईं। इस अवतार में मां की सौ आंखें थीं। उन्होंने अपनी सौ आंखों से मुनियों और जन-जन के कष्ट को देखा। इसके बाद अपनी संतानों के कष्ट को दूर करने के लिए मां शाकंभरी रूप में प्रकट हुईं। अपने इस रूप में मां का स्वरूप विराट था। उनके पूरे शरीर पर नाना प्रकार की वनस्पति थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि इसके बाद जब तक वर्षा नहीं हुई, पूरे संसार ने मां शाकंभरी के शरीर पर उगी शाक-वनस्पति से ही अपने प्राण बचाए। इस तरह से मां ने अपने संतानों के प्राणो की रक्षा की।
बांदा अष्टमी पूजन विधि-
शाकंभरी नवरात्रि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय है। कर्नाटक में, शाकंभरी देवी को बनशंकरी देवी के रूप में जाना जाता है और नवरात्रि के दौरान बांदा अष्टमी एक महत्वपूर्ण दिन है।
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