हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का काफी महत्व है। शरद पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष अश्विन मास की पूर्णिमा को पड़ती है। यह रात बेहद खास होती है और चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं का प्रदर्शन करते हुए दिखायी देता है। शरद पूर्णिमा को चांदनी रात में खीर रखी जाती है और सुबह स्नान करने के बाद इस प्रसाद के रुप में ग्रहण की जाती है।
शरद पूर्णिमा को आमतौर पर कोजागरी या कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात इतनी खास होती है कि इसे देखने के लिए सभी देवता स्वर्ग से धरती पर उतरते हैं। शरद पूर्णिमा की खीर खाने से व्यक्ति निरोगी और स्वस्थ रहता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर दिन रविवार को है। आइये जानते हैं शरद पूर्णिमा का क्या महत्व है।
शरद पूर्णिमा की खीर का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर रात में किरणें बिखेरता है और अमृत की वर्षा करता है। इस दौरान चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे रखी गयी खीर अमृत के समान हो जाती है। इसमें चांद की शीतलता और किरणों के कई तत्व मिले होते हैं। सुबह इस खीर को खाने से व्यक्ति का संपूर्ण स्वास्थ ठीक रहता है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा की रात का बहुत अधिक महत्व है।
भगवान कृष्ण से जुड़ी है शरद पूर्णिमा
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन गोकुल की गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसलिए इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण की भी आराधना की जाती है और सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन वर्षा ऋतु समाप्त होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। इसके अगले दिन से धार्मिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
शरद पूर्णिमा को होता है मां लक्ष्मी का जन्मदिन
शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी का जन्मदिन होता है औ मां रात्रि में भ्रमण करती हैं और जो लोग पूरी रात जगे रहते हैं उन्हें माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में धन धान्य की कमी नहीं होती है।
इस तरह शरद पूर्णिमा की रात धरतीवासियों के लिए एक वरदान है। चांदनी रात में पूरी श्रद्धा के साथ दूध में बनी खीर खुले आसमान के नीचे रखनी चाहिए और अच्छी सेहत की कामना करनी चाहिए।
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