दुनिया के अलग अलग हिस्सों में मौसम में अप्रत्याशित बदलावों के हम सब गवाह बन रहे हैं, सर्दी के समय में गर्मी, गर्मी के समय ठंड, बारिश के समय सूखे से दो चार हो रहे हैं। मसलन यूरोप में सूखा, चीन में सूखा और पाकिस्तान में खौफनाक बाढ़ हर एक तबके को चेतावनी दे रहा है। आमतौर पर मौसमी बदलाव, क्लाइमेट चेंज के लिए वैज्ञानिक ओजोन लेयर के क्षरण को वजह बताते रहे हैं। शोधकर्ताओं मानते रहे हैं कि ओजोन लेयर के क्षरण के लिए सीएफसी यानी क्लोरो फ्लोरो कार्बन जिम्मेदार है। लेकिन अब नई जानकारी के मुताबिक सिर्फ ओजोन जिम्मेदार नहीं है।
आयोडीन है नया दुश्मन
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान आईआईटीएम पुणे सहित 20 देशों के सौ से अधिक शोधकर्ताओं ने चरम पर्यावरण अनुसंधान प्रयोगशाला, स्विट्जरलैंड, साइप्रस संस्थान और एनओएए भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला के सहयोग से आर्कटिक में परिवर्तनों का विश्लेषण करने के लिए हाथ मिलाया। शोधकर्ताओं ने पाया कि आयोडीन और ओजोन के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाएं सतह ओजोन के नुकसान में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता थीं।
शोधकर्ताओं की टीम ने मार्च से अक्टूबर 2020 तक उच्च आर्कटिक क्षेत्र में एक जहाज पर अवलोकन किया और पाया कि आयोडीन वसंत के मौसम में क्षोभमंडल में ओजोन के क्षरण को बढ़ाता है। उन्होंने यह दिखाने के लिए एक रासायनिक मॉडल विकसित किया कि आयोडीन और ओजोन के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाएं सतह ओजोन के नुकसान में दूसरा सबसे बड़ा योगदान दता है। बढ़े हुए मानवीय गतिविधियों की वजह से आयोडीन उत्सर्जन में इजाफा हुआ है। आयोडीन लोडिंग में वायुमंडलीय वृद्धि, साथ ही निकट भविष्य में आर्कटिक समुद्री बर्फ के पतले होने और सिकुड़ने की उम्मीद है और इसकी वजह से ओयोडीन उत्सर्जन में इजाफा होगा।आईआईटीएम का कहना है कि इन नतीजों से संकेत मिलता है कि आयोडीन भविष्य में तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लिहाजा आर्कटिक में ओजोन बजट की सटीक मात्रा के लिए विचार किया जाना चाहिए।
रक्षा कवच का काम करता है ओजोन
ओजोन परत क्षोभमंडल में, वायुमंडल के निचले 10 किलोमीटर और समताप मंडल में पाई जाती है जो जमीन से 10-50 किमी ऊपर फैली हुई है। विश्व मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार ओजोन ऑक्सीजन का एक रूप है जिसमें अणु दो के बजाय तीन परमाणुओं को ले जाते हैं और सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से हमारी रक्षा करने के लिए एक ढाल के रूप में कार्य करते हैं। ओजोन पर क्लोरीन सीएफ़सी) और ब्रोमीन यौगिकों का हमला हुआ है, जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर रेफ्रिजरेंट, कीटनाशकों, सॉल्वेंट्स और आग बुझाने वाले यंत्रों में किया जा रहा था। इससे ओजोन परत में एक बड़े छिद्र का विकास हुआ जो तब से बंद है।