जानें ड्रग की काली दुनिया में Dark Web और क्रिप्टो करंसी का सच, इसलिए होता है इस्तेमाल

Aryan Khan Case Update: आईटी कानून में डार्कवेब पर हो रही गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है। यह पूरी तरह से ग्रे एरिया है। जिसका फायदा अपराधी उठा रहे हैं।

Uses of Dark web  for illegal activities
डार्क वेब का इस्तेमाल गैर कानूनी कामों के लिए तेजी से बढ़ा है। फोटो-आईस्टॉक 
मुख्य बातें
  • डार्क वेब को टीओआर ब्राउजर पर ही चलाया जा सकता है, इसलिए यूजर की पहचान बहुत ही मुश्किल है।
  • सिक्योरटी की वजह से बेहद आसानी से डार्क वेब पर ड्रग की खरीद-फरोख्त की जाती है। 
  • भारत में क्रिप्टो करंसी पर कोई नियमन नहीं है। ऐसे में ड्रग पैडलर को पता है कि क्रिप्टोकरंसी में लेन-देन करना आसान है।


नई दिल्ली। बीते शनिवार को जब से नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मुंबई के पास क्रूज पर हो रही रेव पार्टी में ड्रग्स के इस्तेमाल का खुलासा किया है। उस वक्त से हर रोज सनसनीखेज खुलासे सामने आ रहे हैं। ताजा खुलासा क्रूज पर ड्रग सप्लाई को लेकर आया है। एनसीबी ने जांच के दौरान एक हाईप्रोफाइल ड्रग पेडलर को गिरफ्तार किया है। जिसके जरिए यह बात सामने आई है कि कॉर्डेलिया क्रूज पर रेड के दौरान जो ड्रग्स बरामद हुई थी उसे क्रिप्टोकरेंसी और डार्क वेब के जरिए खरीदा गया था। अब दो सवाल उठते हैं  के Dark Web और क्रिप्टो करंसी क्या है, जिसका इस्तेमाल ड्रग पेडलर करते हैं। और ऐसा करना उनके लिए मुफीद क्यों है।

Dark web क्या है

कैस्परस्काई की रिपोर्ट के अनुसार डार्क वेब इंटरनेट साइटों का छिपा हुआ समूह है। जिसे केवल एक विशेष वेब ब्राउजर द्वारा ही एक्सेस किया जा सकता है। इसका उपयोग इंटरनेट गतिविधि को छुपाकर और निजी रखने के लिए किया जाता है।  जो कानूनी और अवैध दोनों तरह के लिए इस्तेमाल हो सकता है। जबकि कुछ लोग इसका उपयोग सरकारी सेंसरशिप से बचने के लिए करते हैं। यह भी पाया गया है कि इसका उपयोग अवैध गतिविधि के लिए किया जा रहा है।

इंटरनेट पर लाखों वेब पेज, डेटाबेस और सर्वर सभी 24 घंटे चलते रहते हैं। आमतौर पर हम जिन कामों  के लिए  ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें सरफेस वेब (Surface Web) कहा जाता है। जो कि कुल इंटरनेट का महज 4 फीसदी हिस्सा है।   जबकि डीप वेब (Deep Web)इंटरनेट का 96 फीसदी हिस्सा है।  इसके तहत कंटेट प्रोटेक्टेड होता है। यहां पर बैंकिंग और दूसरे पासवर्ड, सरकारों और कंपनियों के सीक्रेट डॉक्यूमेंट आदि होते हैं। जिन्हें आसानी से एक्सेस नहीं किया जा  सकता है। डीप बेव में यूजर की पहचान गुप्त रहती है, और वहां पर यूजर की एक्टिविटी की भी नहीं पता की जा सकती है। 

डीपवेब के अंदर ही एक छोटा सा हिस्सा डार्क वेब है। जिसका इस्तेमाल अब ड्रग सप्लाई, साइबकर क्राइम, हैकिंग, मानव तस्करी जैसे अवैध काम होने लगे हैं।  डार्क वेब की वेबसाइट्स पूरी तरह से सिक्योर होती हैं। यानी वह इनक्रिप्टेड होती है। इसके अलावा इन्हें नार्मल ब्राउजर जैसे क्रोम आदि  से एक्सेस नहीं किया जा सकता है। डार्कवेब पर इंटरनेट यूज के लिए  सिक्योर वीपीएन (VPN)की भी जरूरत पड़ती है। इसी सिक्योरिटी की वजह से ड्रग पैडलर आर्डर लेने में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। क्योंकि यहां के लेन-देन को इनक्रिप्टेड करना जांच और सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी आसान नहीं होता है।


क्रिप्टो करंसी में क्यों लेन-देन (Crypto currency)

क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल मुद्रा है। यानी यह एक ऐसी मुद्रा है जो रूपये, पैसे, डॉलर की तरह फिजिकल रुप में मौजूद नहीं है। इसके जरिए केवल ऑनलाइन ही लेन-देन किया जा सकता है। डिजिटल मुद्रा इनक्रिप्टेड यानी कोडेड होती हैं इसलिए इन्हें क्रिप्टोकरेंसी भी कहते हैं। कुछ दक्षिणी अमेरिकी देशों ने क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता दी है लेकिन भारत में क्रिप्टोकरेंसी को अभी मान्यता नहीं है। हाल ही में आरबीआई ने कहा है कि वह डिजिटल करंसी के नियमन पर विचार कर रहा है। भले ही क्रिप्टो करंसी को आरबीआई ने अभी मान्यता नहीं दी है। लेकिन इसका इस्तेमाल भारत में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। नैसकॉम की रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह भारत में क्रिप्टो करंसी का इस्तेमाल बढ़ा है, उसे देखते हुए 2030 तक भारत में क्रिप्टो मार्केट 1790 करोड़ रुपये के वैल्युएशन पर पहुंच गया है। 

साफ है कि भारत में भले ही क्रिप्टो करंसी वैध नहीं है लेकिन उसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। इसी लूपहोल का ड्रग पैडलर फायदा उठा रहे हैं। उन्हें पता है कि क्रिप्टोकरंसी में लेन-देन पर किसी की नजर नहीं है। ऐसे में बड़े आसानी से ड्रग की खरीद-फरोख्त की जा सकती है। 

भारत में आईटी कानून क्या कहता है

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया, देखिए मौजूदा आईटी कानून में क्रिप्टो करंसी या फिर डार्कवेब पर हो रही गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है। यह पूरी तरह से ग्रे एरिया है। जहां तक डार्क वेब की बात है तो उसको टीओआर ब्राउजर पर ही चलाया जा सकता है, इसलिए यूजर की पहचान नहीं की जा सकती है। इसलिए गैर कानूनी कामों के लिए इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।

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