'International Day of Democracy 2021':जानें इस 'खास दिन' का महत्व, क्यों मनाते हैं इसे

World Democracy day 2021:लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें किसी भी देश के नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करके एक प्रतिनिधि को चुनते हैं।

 World Democracy Day 2021
15 सितंबर को लोकतंत्र के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया गया 

नई दिल्ली:  2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देने और बनाए रखने के उद्देश्य से 15 सितंबर को लोकतंत्र के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया और सभी सदस्य राज्यों और संगठनों को इस दिन को उचित तरीके से मनाने के लिए आमंत्रित किया जो जन जागरूकता बढ़ाने में योगदान देते हैं।

2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की शुरुआत की गई थी सबसे पहले 2008 में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया। इसके तहत दुनिया के हर कोने में सुशासन लागू करना है,  भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जा सकता है।

लोकतंत्र का कोई एक मॉडल नहीं है

लोकतंत्र में समान विशेषताएं हैं, लोकतंत्र का कोई एक मॉडल नहीं है और लोकतंत्र किसी भी देश या क्षेत्र से संबंधित नहीं है, लोकतंत्र एक सार्वभौमिक मूल्य है जो लोगों की अपनी राजनीतिक, आर्थिक निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र रूप से व्यक्त की गई इच्छा पर आधारित है। सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था, और जीवन के सभी पहलुओं में उनकी पूर्ण भागीदारी है।

लोकतन्त्र शब्द का अर्थ (Meaning of Democracy)-

लोकतन्त्र (संस्कृत: प्रजातन्त्रम् ) (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन",) या प्रजातन्त्र एक ऐसी शासन व्यवस्था और लोकतान्त्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतन्त्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किन्तु लोकतन्त्र का सिद्धान्त दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण बनाती है। लोकतन्त्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत जनता अपनी स्वेच्छा से निर्वाचन में आए हुए किसी भी दल को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है, तथा उसकी सत्ता बना सकती है। लोकतन्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है ,लोक + तन्त्र लोक का अर्थ है जनता तथा तन्त्र का अर्थ है शासन

लोकतन्त्र के प्रकार (Type of Democracy)-

लोकतन्त्र की परिभाषा के अनुसार यह "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है"। लेकिन अलग-अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग-अलग धारणाओं के प्रयोग से इसकी अवधारणा कुछ जटिल हो गयी है। प्राचीनकाल से ही लोकतन्त्र के सन्दर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये हैं, पर इनमें से कई कभी क्रियान्वित नहीं हुए।

प्रतिनिधि लोकतन्त्र

एक नग्न बालक और एक युवा स्त्री का चित्र - बालक के हाथ में एक पुस्तिका है और वह गणराज्य का प्रतीक है और युवती लोकतंत्र की। प्रतिनिधि लोकतन्त्र में जनता सरकारी अधिकारियों को सीधे चुनती है। प्रतिनिधि किसी जिले या संसदीय क्षेत्र से चुने जाते हैं या कई समानुपातिक व्यवस्थाओं में सभी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ देशों में मिश्रित व्यवस्था प्रयुक्त होती है। यद्यपि इस तरह के लोकतन्त्र में प्रतिनिधि जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, लेकिन जनता के हित में कार्य करने की नीतियाँ प्रतिनिधि स्वयं तय करते हैं। यद्यपि दलगत नीतियाँ, मतदाताओं में छवि, पुनः चुनाव जैसे कुछ कारक प्रतिनिधियों पर असर डालते हैं, किन्तु सामान्यतः इनमें से कुछ ही बाध्यकारी अनुदेश होते हैं।इस प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जनादेश का दबाव नीतिगत विचलनों पर रोक का काम करता है, क्योंकि नियमित अन्तरालों पर सत्ता की वैधता हेतु चुनाव अनिवार्य हैं

एक तरह का प्रतिनिधि लोकतन्त्र है, जिसमें स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। उदार लोकतन्त्र के चरित्रगत लक्षणों में, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, कानून व्यवस्था, शक्तियों के वितरण आदि के अलावा अभिव्यक्ति, भाषा, सभा, पन्थ और संपत्ति की स्वतन्त्रता प्रमुख है।उदार लोकतान्त्रिक देशों में वंचित वर्ग का सशक्तिकरण किया जाता है, जिससे देश की उन्नति हो। उदार लोकतन्त्र में लोगों का अर्थात नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं का लाभ देना सरकार या राज्य का कर्तव्य है।

प्रत्यक्ष लोकतन्त्र

प्रत्यक्ष लोकतन्त्र( में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। इसे प्रत्यक्ष कहा जाता है क्योंकि सैद्धान्तिक रूप से इसमें कोई प्रतिनिधि या मध्यस्थ नहीं होता। सभी प्रत्यक्ष लोकतन्त्र छोटे समुदाय या नगर-राष्ट्रों में हैं। उदाहरण - स्विट्जरलैंड

भारत में लोकतंत्र के प्राचीनतम प्रयोग

प्राचीन काल मे भारत में सुदृढ़ व्यवस्था विद्यमान थी। इसके साक्ष्य हमें प्राचीन साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों से प्राप्त होते हैं। विदेशी यात्रियों एवं विद्वानों के वर्णन में भी इस बात के प्रमाण हैं।प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था में आजकल की तरह ही शासक एवं शासन के अन्य पदाधिकारियों के लिए निर्वाचन प्रणाली थी। योग्यता एवं गुणों के आधार पर इनके चुनाव की प्रक्रिया आज के दौर से थोड़ी भिन्न जरूर थी। सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था। ऋग्वेद तथा कौटिल्य साहित्य ने चुनाव पद्धति की पुष्टि की है परंतु उन्होंने वोट देने के अधिकार पर रोशनी नहीं डाली है।

प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7707 सदस्य थे

वर्तमान संसद की तरह ही प्राचीन समय में परिषदों का निर्माण किया गया था जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलता-जुलता था। गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था। इसके सदस्यों की संख्या विशाल थी। उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7707 सदस्य थे। वहीं यौधेय की केन्द्रीय परिषद के 5000 सदस्य थे। वर्तमान संसदीय सत्र की तरह ही परिषदों के अधिवेशन नियमित रूप से होते थे।

बहुमत से लिये गये निर्णय को ‘भूयिसिक्किम’ कहा जाता था

किसी भी मुद्दे पर निर्णय होने से पूर्व सदस्यों के बीच में इस पर खुलकर चर्चा होती थी। सही-गलत के आकलन के लिए पक्ष-विपक्ष पर जोरदार बहस होती थी। उसके बाद ही सर्वसम्मति से निर्णय का प्रतिपादन किया जाता था। सबकी सहमति न होने पर बहुमत प्रक्रिया अपनायी जाती थी। कई जगह तो सर्वसम्मति होना अनिवार्य होता था। बहुमत से लिये गये निर्णय को ‘भूयिसिक्किम’ कहा जाता था। इसके लिए वोटिंग का सहारा लेना पड़ता था। तत्कालीन समय में वोट को 'छंद' कहा जाता था। निर्वाचन आयुक्त की भांति इस चुनाव की देख-रेख करने वाला भी एक अधिकारी होता था।

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