आगरा के नौबरी गांव में लगी ‘ ऑक्सीजन की पाठशाला’

कोरोना संकट के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बाद आगरा के नौबरी गांव में एक नई पहल देखने को मिल रही है।

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आगरा। कोरोना संकट के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बाद आगरा के नौबरी गांव में एक नई पहल देखने को मिल रही है। यहां पर पेड़ के नीचे ऑक्सीजन के महत्व की पाठशाला चल रही है। गांव के लोग यहां न केवल कोरोना बीमारी से बचने के उपाय पेड़ के महत्व को समझ रहे हैं, बल्कि लोग सुबह योग और ध्यान की कक्षाओं में शामिल भी हो रहे हैं।

गांव वालों का यह भी मानना है कि सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों को पेड़ के नीचे बैठने से काफी राहत मिल गयी है। ग्रामीणों में ऑक्सीजन स्तर सुधारने को लेकर पीपल के पेड़ के नीचे बैठने की बात फैल गयी है और पूरे गांव से लोग पेड़ो को नीचे आकर दिन में अपना वक्त बिता रहे हैं।

लगभग तीन हजार आबादी वाले इस गांव के नवनिर्वाचित प्रधान स्नेहलता के पति महिपाल यादव ने बातचीत में बताया ” कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की बहुत किल्लत देखने मिली। इसकी चपेट में हमारे गांव के विष्णु और महिला रेनू की मौत हो गयी। हमारे गांव के आस-पास में पीपल के पेड़ काफी संख्या में है। इसे देखते हुए हमने फैसला लिया कि हम सभी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर सुबह योगा करेंगे। एक पास एक चबूतरा बना हुआ जहां पर यहां ग्रामीण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए रोज योग करते है। यहां गुरूकुल की तरह से पूरी 2 घंटे की कक्षा रोज चलती है। इस कारण हमारे गांव एक लड़के की ऑक्सीजन लेवल ठीक हो गयी है।”

उन्होंने बताया कि ग्रामीण यहां सुबह से दोपहर तक अपना वक्त गुजारते हैं। रात में पेड़ के नीचे कोई नहीं सोता है। इसके अलावा हमने निर्णय लिया कि इस बार बरसात में पूरे ग्रामीण क्षेत्र में 500 पौधे सिर्फ पीपल के लगवाए जाएंगे।

गांव के निवासी राजू बताते हैं कि ” एक सप्ताह पहले मुझे सांस लेने में दिक्कत हुई थी और मेरा ऑक्सीजन लेवल 88 हो गया था। इसके बाद हमने पीपल के पेड़ के नीचे शरण ली। जहां पर 4-5 घंटे बैठने के बाद ऑक्सीजन लेवल ठीक हो गया है। अब कोई दिक्कत नहीं है। वृक्ष की नीचे योगा और पेड़ पौंधों की जानकारी मिल रही है। गांव के विनोद, सोनू को भी यही दिक्कत हुई थी। इन लोगों ने पेड़ के नीचे शरण ली अब ठीक हो गये हैं। ”

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर डा. वेंकटेष दत्ता ने बताया ” पीपल के पेड़ से जो ऑक्सीजन निकलती है वह जरूरी नहीं वहां रहे। वह आस-पास फैल जाती है। इसके लिए बहुत ज्यादा पेड़ की जरूरत पड़ेगी। पेड़ का घनत्व इतना होना चाहिए, जिससे ऑक्सीजन की एकग्रता बनी रहे। 21 प्रतिशत ऑक्सीजन हवा में होती है। बस सांस लेने की प्रक्रिया जान लें तो कहीं भी रहकर सांसो पर नियंत्रण कर सकते है। ऐसा देखा गया है कि जहां पेड़ है वह भी अस्पताल गये हैं। इस पर वैज्ञानिक अध्ययन की जरूरत है। ऑक्सीजन लेवल बढ़ने से मैं इंकार नहीं कर रहा हूं। लेकिन यही एक ग्रुप अगर पेड़ के नीचे नहीं रहते तो तुलना होती। फिर वास्तविक हालत का पता चलता। अभी क्या हुआ यह कहना मुश्किल है। खुले और पेड़े के नीचे ऑक्सीजन ज्यादा मिलती है। इसके आलावा गहरी सांस लेने का भी असर हुआ होगा।”

उन्होंने बताया कि पीपल के अलावा बरगद, पाकड, सीता अशोक भी अच्छी आक्सीजन देते है। यूपी में अगर देखें तो गोमती बेसिन में 5 प्रतिशत जंगल बचे है। इसी प्रकार यमुना रिवर बेसिन में 5.5 प्रतिशत फारेस्ट बचे है। लखीमपुर, पीलीभीत, शाजहांपुर, थोड़ा गोंडा के आस पास छोड़ दें। प्राकृतिक जंगल कहीं नहीं बचे हैं।

विवेकानंद अस्पताल के आयुवेदाचार्य डा. विजय सेठ का कहना है ” पीपल में दिन में ऑक्सीजन लेवल हाई होता है। पीपल की पत्ती, फल, जड़ छाल सभी का मेडिसिनल वैल्यू है। लेकिन बिना डाक्टर के परामर्ष के इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यह कफ, पित्त, बात दोषों को नास करता है। यह सुबह के समय ऑक्सीजन बहुत मात्रा में छोड़ता है। इसके अलावा सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से भी बचाता है।”

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