गुजरात के शख्स में पाया गया अनोखा ब्लड ग्रुप, सिर्फ दुनिया में 10 लोग ही ऐसे मौजूद

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आदित्य साहू
Updated Jul 14, 2022 | 15:50 IST

Unique Blood Group EMM Negative: यह भारत का पहला शख्स है, जिसमें अनोखा ब्लड ग्रुप पाया गया है। इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप का नाम ईएमएम निगेटिव (EMM Negative) है। इस ब्लड ग्रुप का देश में पहला शख्स मिलने के बाद डॉक्टर्स भी हैरान हैं।

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फोटो क्रेडिट- istock  |  तस्वीर साभार: Representative Image
मुख्य बातें
  • 65 साल के शख्स में पाया गया अनोखा ब्लड ग्रुप
  • दुनिया में सिर्फ 10 लोग ही इस ब्लड ग्रुप के
  • शख्स को ब्लड की बहुत ही ज्यादा जरूरत

Unique Blood Group EMM Negative: आपने आज तक A, B, O और AB जैसे ब्लड ग्रुप का ही नाम सुना होगा। लेकिन एक दुर्लभ ब्लड ग्रुप वाला शख्स देश में पाया गया  है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस ब्लड ग्रुप के दुनिया में सिर्फ 10 लोग ही मौजूद हैं। यह भारत का पहला शख्स है, जिसमें अनोखा ब्लड ग्रुप पाया गया है। इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप का नाम ईएमएम निगेटिव (EMM Negative) है। इस ब्लड ग्रुप का देश में पहला शख्स मिलने के बाद डॉक्टर्स भी हैरान हैं।

गुजरात के राजकोट में रहने वाले 65 वर्षीय शख्स में यह अनोखा ओर दुर्लभ ब्लड ग्रुप पाया गया है। शख्स दिल की बीमारी से पीड़ित है, जब उसका ब्लड टेस्ट करवाया गया तब उसके ब्लड ग्रुप के बारे में पता चला। सोचकर ही हैरानी होती है कि इससे पहले दुनिया में सिर्फ 9 लोग ऐसे थे, जिनमें ईएमएम निगेटिव ब्लड ग्रुप था। जानकर हैरानी होगी कि एक व्यक्ति के शरीर में कई अलग-अलग प्रकार के ब्लड सिस्टम होते है। किसी में ए, किसी में बी, किसी में ओ, किसी में आरएच (RH) और किसी में डफी (Duffy)। ये सभी आम ब्लड ग्रुप हैं।

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शख्स को है खून की कमी

दूसरी तरफ ईएमएम निगेटिव वाले शख्स में 42 सिस्टम मौजूद हैं। इस ब्लड ग्रुप वाले लोगों में हाई-फ्रिक्वेंसी एंटीजन की कमी होती है। यह न तो किसी से खून ले सकते हैं और न ही किसी को अपना खून दे सकते हैं। 65 साल के जिस व्यक्ति में यह अनोखा ब्लड ग्रुप पाया गया है, उसे खून की बहुत ही सख्त जरुरत है। दरअसल, उसके दिल की सर्जरी होनी है, लेकिन खून ना मिल पाने की वजह से उसके दिल की सर्जरी हो नहीं पा रही है। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन ने इस ब्लड ग्रुप का नाम EMM निगेटिव रखा है। दरअसल, EMM लाल रक्त कोशिकाओं में एंटीजन होता है। आसानी से यह खून मिलता नहीं है। ये गोल्डेन ब्लड पहली बार साल 1961 में दुनिया के सामने आया था।

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