Right to Repair: बहुत जल्दी ही उपभोक्ताओं को केंद्र सरकार के तरफ से राइट टू रिपेयर का अधिकार मिल सकता है। यानी कोई इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद खराब होने पर कंपनियां उसकी रिपेयरिंग से इंकार नहीं कर सकेंगी। आम तौर पर कंपनियां मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, वाहनों के खराब होने पर उनके मरम्मत में ढुलमुल रैवया अपनाती हैं। और रिपेयरिंग में देरी या फिर कंपोनेंट, कल-पुर्जे उपलब्ध नहीं होने से उपभोक्ता को नया प्रोडक्ट लेना पड़ता है। लेकिन आने वाले दिनों में कंपनियां ऐसा नहीं कर सकेगी। जिसका सीधा फायदा उपभोक्ता को मिलेगा और उसके पैसों की बचत होगी। साथ ही इसके जरिए ई-कचरे में भी कमी आएगी। अभी भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है।
सरकार की क्या है तैयारी
उपभोक्ता कार्य विभाग ने 'राइट टू रिपेयर' अधिकार को किस तरह लागू किया जाय, उसके फ्रेमवर्क को तैयार करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया है। और 13 जुलाई को हुई समिति की पहली बैठक में राइट टू रिपेयर के लिये अहम सेक्टरों की पहचान की गई। इसमें कृषि उपकरण, मोबाइल फोन,टेबलेट, टीवी, फ्रिज,वाशिंग मशीन जैसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम और मोटर-वाहन उपकरणों में सुधार करने तथा उन्हें दुरुस्त करने के अधिकार के तहत शामिल करने के रुप में पहचान की गई है।
कैसे मिलेगा फायदा
कानून बनने के बाद अगर किसी व्यक्ति के मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट,टीवी, फ्रिज,एसी, दोपहिया वाहन कार जैसे कोई प्रोडक्ट खराब हो जाते हैं, तो उस कंपनी का सर्विस सेंटर रिपेयर करने से इनकार नहीं कर सकेगा। यानी वह यह नहीं कह सकेगा कि कि पार्ट पुराना हो गया है और मार्केट में उपलब्ध नहीं है। उसे बनाया नहीं जा सकता।
मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हुई है कि कंपनियां उत्पादों की जानकारी देने वाली पुस्तिकाओं का प्रकाशन करने से बचती हैं, जबकि इनसे उपभोक्ता आसानी से अपने उपकरण की मरम्मत कर सकता है। निर्माताओं का रिटेल पुर्जों पर भी नियंत्रण रहता है, यानी ऐसे पेंच और अन्य पुर्जे, जिनकी डिजाइन एक खास कंपनी ही करती है। मरम्मत की पूरी प्रक्रिया पर कंपनियों का एकाधिकार होने से उपभोक्ताओं के चयन का अधिकार का उल्लंघन होता है। उदाहरण के लिये डिजिटल वारंटी कार्ड में यह लिखा होता है कि अगर उपभोक्ता ने किसी गैर-मान्यता प्राप्त रिपेयर सेंटर से गैजेट्स को ठीक करवाता है तो वह मिस्त्री से वारंटी का हक खो देगा। नई व्यवस्था में उपभोक्ता मिल सकती है। और यूजर्स कंपनी के सर्विस सेंटर के अलावा कहीं भी अपने गैजेट्स को ठीक करवा सकेंगे।
अमेरिका, ब्रिटेन भी लागू है कानून
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में उपभोक्ताओं के पास राइट टू रिपेयर का अधिकार है। अमेरिका में फेडरल ट्रेड कमीशन ने निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वे गलत गैर-प्रतिस्पर्धात्मक व्यवहार को सुधारें। उनसे कहा गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उपभोक्ता भी चाहें तो खुद मरम्मत का काम कर लें या किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी से यह काम करवाएं।
हाल ही में यूके ने एक ऐसा ही कानून पारित किया है, जिसमें सभी इलेक्ट्रॉनिक सामान निर्माताओं को शामिल किया गया है, ताकि उपभोक्ताओं को पुर्जे मिल सकें और वे या तो स्वयं अथवा किसी तीसरे पक्ष से या मरम्मत करने की स्थानीय दुकानों से मरम्मत का काम करवा सकें।
ऑस्ट्रेलिया में रिपेयर कैफे काम करते हैं। ये ऐसे स्थान हैं, जहां स्वयंसेवी मिस्त्री मौजूद रहते हैं और उपकरणों की मरम्मत करते हैं। यूरोपीय संघ ने भी कानून पारित किया है, जिसके तहत निर्माताओं से कहा गया है कि वे दस वर्षों तक रिपेयरिंग करने वालों को उत्पादों के पुर्जे उपलब्ध कराएं।
ई-कचरे में आएगी कमी
सरकार इस कदम के जरिए न केवल उपभोक्ताओं के अधिकार बढ़ाना चाहती है। साथ ही देश में बढ़ रहे ई-कचरे को भी कम करना चाहती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनीटर रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा ई-कचरा उत्पादन करने वाला देश था। सबसे ज्यादा चीन, उसके बाद अमेरिका और तीसरे नंबर पर भारत में ई-कचरा निकलता है। साल 2019 में पूरी दुनिया में 53.6 मिलियन टन कचरा निकला था। जिसमें चीन में 10.1 मिलियन टन, अमेरिका में 6.9 मिलियन टन और भारत में 3.2 मिलियन टन कचरा निकला था।