Varanasi Manikarnika Ghat : गोरखपुर की तरह आधुनिक तकनीक से बनेगा मणिकर्णिका घाट का शवदाहगृह

Varanasi Manikarnika Ghat: वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर गोरखपुर की तर्ज पर आधुनिक लकड़ी का शवदाह गृह बनाया जा रहा है। यह सनातन परंपरा का संरक्षण करेगा और प्रदूषण को होने से रोकेगा।

Varanasi Manikarnika Ghat
आधुनिक तकनीक से बनेगा मणिकर्णिका घाट का शवदाहगृह  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • आधुनिक तकनीक से बनेगा मणिकर्णिका घाट का शवदाहगृह
  • गोरखपुर तकनीक के आधार पर दो शवदाहगृह बनेगें
  • सनातन परंपरा का संरक्षण भी होगा और प्रदूषण को होने से रुकेगा

Varanasi Manikarnika Ghat: महादेव की नगरी काशी में लोग तारक मंत्र के लिए आते हैं और यहां पर मोक्ष की कामना करते हैं। लेकिन अब काशी में मोक्ष गोरखपुर की तकनीक पर मिलेगी। आप सोच रहे होंगे कैसे? दरअसल, बाबा विश्वनाथ व गोरक्षनाथ का बेहद गहरा नाता है। अब यह नाता मोक्ष प्राप्ति में भी नजर आएगा क्योंकि अब काशी में गोरखपुर की तर्ज पर आधुनिक लकड़ी का शवदाहगृह बनाया जा रहा है। यह न सिर्फ सनातन परंपरा का संरक्षण करेगा बल्कि पर्यावरण को भी स्वच्छ रखेगा। जल्द ही काशी में आने वाले लोगों को यह सुविधाएं मिलेंगी।

गोरखपुर की आधुनिक तकनीक से बनेगा मणिकर्णिका घाट का शवदाहगृह वाराणसी में दो श्मशान घाट है। एक महाश्मशान मणिकर्णिका और दूसरा हरिश्चंद्र घाट पर बना हुआ है। इन दोनों श्मशान घाट पर इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगीं हुईं हैं। यहां इलेक्ट्रॉनिक रूप में शवदाह किया जाता है।

प्रदूषण से भी मिलेगी मुक्ति

इनमें से मणिकर्णिका घाट पर सबसे ज्यादा शवदाह किया जाता है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत कम ही लोग इस इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह में शवदाह कराते हैं। इसलिए ज्यादा भीड़ लकड़ी से होने वाले क्षेत्र में होती है। अगर आधुनिक लकड़ी का शवदाह गृह बन जाएगा, तो इस क्षेत्र पर भीड़ भी कम रहेगी और प्रदूषण भी कम होगा। गोरखपुर की तकनीक का होगा इस्तेमाल शवदाह गृह में जहां कम लकड़ी में शवदाह हो जाएगा, वहीं प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी। इसकी संरचना की बात करें तो यह शवदाह गृह एक बड़े से बंद बॉक्स की तरह होगा, जिसके चारों तरफ अभ्रक की ईंटें लगी होंगी। साथ ही, इसमें एक चिमनी भी होगी। 

लगी अभ्रक की ईंटें

शवदाह के लिए इसके अंदर एक स्ट्रेचर ट्राली रहेगी, जिसमें शव रखकर मुखाग्नि दी जाएगी। उसकी प्रक्रिया होगी कि सबसे पहले ट्राली पर लकड़ी, उसके ऊपर शव फिर उसके ऊपर लकड़ी रखी जाएगी, फिर इस ट्राली को बॉक्स के अंदर बंद कर दिया जाएगा। खास बात यह है कि, इसमें लगी अभ्रक की ईंटें महज एक घंटे में शव को जला देगी। चिमनी पर लगा वाटर स्प्रिंकल शवदाह से निकलते धुंए पर पड़ेगा जो धुंए की राख को वायुमंडल तक नहीं पहुंचने देगा।

लकड़ी की खपत, बचेगा समय

इस बाबत नगरायुक्त प्रणय सिंह ने बताया कि, गोरखपुर तकनीक के आधार पर जल्द ही वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर इस प्रकार के दो शवदाहगृह बनाए जाएंगे। इसको लेकर के एक संस्था आगे आई है, जो इसके लिए डोनेट करेगी। इसको बनाने में करीब एक करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह महाश्मशान नाथ मंदिर के पास ही बनाया जाएगा। नागरयुक्त ने बताया कि, इससे जहां एक ओर लकड़ी की खपत कम होगी। वहीं, इको फ्रेंडली भी होगा क्योंकि सामान्य तौर पर शवदाह के लिए लगभग 3 क्विंटल लकड़ी का प्रयोग होता है। और 3 से 4 घंटे में यह संपन्न होता है, लेकिन इस तकनीक से यह एक से डेढ़ घंटे में हो जाएगा।

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