Jan 22, 2025
मुगलकाल के अंतिम बादशाह बाहदुर शाह जफर को बदनसीब बादशाह कहते थे।
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मुगल बादशाह की मौत के बाद उनके मकबरे बनाए जाते थे, लेकिन बहादुर शाह जफर को भारत में दो गज जमीन भी नसीब नहीं हुई।
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साल 1857 में बहादुर शाहर जफर ने अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हुए विद्रोहियों का नेतृत्व किया था।
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विद्रोह को दबाने कि लिए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। अंग्रेजों बहादुर शाह जफर के सामने ही उनके तीन बेटों को गोली मार दी गई।
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अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को भारत से निर्वासित कर रंगून भेज दिया। उन्हें अंग्रेजों की पेंशन पर जीना पड़ा।
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बहादुर शाहर जफर की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें दिल्ली के महरौली में दफन किया जाए। लेकिन उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं हुई।
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बहादुर शाह जफर की मृत्यु 7 नवंबर 1862 में हुई। उन्हें रंगून में ही दफन किया गया। जिससे किसी को उनकी कब्र का पता न चले।
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132 सालों बाद बहादुर शाह जफर की कब्र के बारे में पता चला। जिसके बाद 1994 में उनकी दरगाह बनाई गई।
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बाहदुर शाह जफर खुद को भी बदनसीब कहते थे। उनकी इस बारे में एक शायरी भी लिखी थी "कितना है बद-नसीब जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में"
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