Feb 02, 2025
By: Medha Chawlaभारत की राजधानी दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी का उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है।
Credit: canva
सूफी कवि और संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो ने बसंत पंचमी से जुड़ी इस परंपरा की शुरुआत की थी।
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इस दिन दरगाह पर आए भक्त पीले वस्त्र पहनते हैं और सूफी संगीत और कव्वाली के माध्यम से हजरत निजामुद्दीन को श्रद्धांजलि देते हैं।
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मान्यताओं के अनुसार अमीर खुसरो ने हिंदू महिलाओं को पीले वस्त्र पहनकर बसंत का पर्व मनाते देखा था। फिर उन्होंने इसे अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन को खुश ।
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कहा जाता है कि हजरत निजामुद्दीन अपनी भतीजी की मृत्यु से बहुत दुखी थे, तब अमीर खुसरो ने उन्हें बसंत का आनंद दिलाने के लिए ये विशेष आयोजन किया था।
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इस अवसर पर दरगाह पर भव्य कव्वाली और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें सूफी परंपरा के गीत गाए जाते हैं।
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ये उत्सव धार्मिक सद्भावना और सांस्कृतिक मेलजोल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण माना जाता है। इस स्थान पर बड़ी संख्या में हर धर्म के लोग आते हैं।
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अन्य स्थानों पर जहां बसंत पंचमी का दिन माता सरस्वती की पूजा से जुड़ा होता है, वहीं दरगाह पर इसे सूफी प्रेम और भक्ति के रूप में मनाया जाता है।
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हर साल बसंत पंचमी के अवसर पर भक्त और पर्यटक दरगाह पहुंचते हैं और इस सूफी परंपरा के रंग में डूब जाते हैं। ये उत्सव भारतीय संस्कृति का अभिन्न हि��्सा है।
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