Jan 22, 2025

कुंडली में इस योग के बनने पर व्यक्ति छोड़ देता है घर-परिवार और बन जाता है साधु-संन्यासी

Laveena Sharma

​साधु-सन्यासी​

प्रयागराज में महाकुंभ लगा है जिसमें बड़ी संख्या में साधु-सन्यासी आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे हैं।

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मौन व्रत क्या है?

​ऐसे में सवाल उठता है कि कोई व्यक्ति आखिर साधु-संन्यासी कैसे बन जाता है।​

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​कैसे किसी व्यक्ति के मन में सांसारिक दुनिया को छोड़कर संन्यास ग्रहण करने का विचार आता है।​

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​ये है कारण​

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो व्यक्ति की कुंडली में शनि की कुछ विशेष स्थितियां इंसान को वैराग्य की ओर ले जाती हैं।

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​ऐसे जागती है संन्यास लेने की भावना​

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर वैराग्य के कारक ग्रह शनि की दृष्टि लग्न भाव पर पड़ रही है, और लग्न कमजोर है तो व्यक्ति के में मन में वैराग्य की भावना जागती है।

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​ऐसे व्यक्ति को साधु-संन्यासी बनकर ही शांति की प्राप्ति होती है।​

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​पहले भाव का स्वामी​

पहले भाव का स्वामी कुंडली में कहीं पर भी हो और उसपर शनि की दृष्टि अगर पड़ रही है, तब भी व्यक्ति के अंदर वैराग्य की भा���ना जागती है।

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​संन्यास के प्रबल योग​

कुंडली के नवम भाव को धर्म का भाव माना जाता है। इस भाव में अगर शनि अकेला बैठा हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो संन्यास के प्रबल योग बनते हैं। वहीं इस भाव में बैठा शनि व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है।

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​डिसक्लेमर​

इस लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। timesnowhindi.com इसकी सटीकता या विश्वसनीयता की पुष्टि नहीं करता है। इसलिए किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की राय जरूर लें।

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