यूक्रेन की राह पर ताइवान ! युद्ध से होगा कंप्यूटर-मोबाइल का संकट,चीन बना खतरा

दुनिया
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated May 24, 2022 | 13:42 IST

Taiwan-China Dispute: ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं। यह कुछ इसी तरह है जैसे यूक्रेन को लेकर रूस और नॉटो देशों का संघर्ष है। चीन और ताइवान के बीच 1949 से ही विवाद चल रहा है।

China-Taiwan Dispute
ताइवान पर अमेरिका-चीन आमने-सामने  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है।
  • Quad और AUKUS से चीन को प्रशांत महासागर क्षेत्र में बड़ी चुनौती मिल रही है ।
  • हाल ही में वायरल हुए ऑडियो क्लिप में चीन के वरिष्ठ अधिकारी ताइवान पर हमले की बातचीत कर रहे हैं।

Taiwan-China Dispute: जिस क्वॉड (Quad) सम्मेलन को लेकर, चीन ने बेचैनी और नाराजगी दिखाई थी, उसने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है। इस कड़ी में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का ताइवान को लेकर दिया गया बयान काफी कुछ कह रहा है। उन्होंने कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करेगा। ताइवान के खिलाफ बल प्रयोग करने का चीन का कदम न केवल अनुचित होगा बल्कि यह यूक्रेन में की गई कार्रवाई के समान होगा।

बाइडेन के बयान पर चीन ने कहा है कि हम अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए तैयार हैं। दुनिया के दो प्रमुख ताकतों के बीच इस तरह के टकराव की बात, एक नए संकट का इशारा कर रही है। जिसमें ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं। यह कुछ इसी तरह है जैसे यूक्रेन को लेकर रूस और नॉटो देशों का संघर्ष है। शायद इसीलिए क्वॉड को चीन एशिया का नॉटो कह कर संबोधित कर रहा है। यही नहीं अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो दुनिया के सामने चिप का संकट खड़ा हो जाएगा। क्योंकि पूरी दुनिया चिप के लिए ताइवान पर निर्भर है।

ऑडियो क्लिप हुई थी वायरल

असल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को चीन को चेतावनी देने का बयान उस वक्त आया है, जब एक चीन की ताइवान को लेकर एक ऑडियो क्लिप वायरल हुई है। इस वारयल क्लिप में चीन के वरिष्ठ अधिकारी ताइवान पर हमले की बातचीत कर रहे हैं। लीक किए गए इस क्लिप से साफ है कि ताइवान को लेकर तनातनी बढ़ती जा रही है। इसीलिए बाइडेन ने चीन को चेतावनी देते समय यूक्रेन का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ताइवान की रक्षा की जिम्‍मेदारी कहीं ज्‍यादा बढ़ गई है। 

अक्टूबर में चीन ने ताइवान सीमा में उड़ाए थे लड़ाकू विमान

वैसे तो चीन और ताइवान के बीच 1949 से ही विवाद चल रहा है। लेकिन विवाद की ताजा शुरूआत एक अक्टूबर 2021से हुई । जब चीन ने एक अक्टूबर को अपने राष्ट्रीय दिवस पर करीब 38 फाइटर प्लेन की ताइवान की सीमा का उल्लंघन कर उड़ाए। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक चीन की इस नापाक हरकत में 18 J-16, 4 सुखोई-30, 2 परमाणु बम गिराने में सक्षम एच-6 बॉम्‍बर और दूसरे विमान भेजे थे। इसके जवाब में ताइवान की एयरफोर्स ने भी अपने फाइटर जेट्स उड़ाए। इसके बाद जनवरी और मार्च 2022 में भी ऐसी हरकत चीन ने की थी। 

क्या है विवाद की जड़

असल में चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। ताइवान का अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है। चीन का लक्ष्‍य ताइवान को चीन के कब्‍जे को मानने के लिए मज‍बूर करने रहा है। रूस-यूक्रेन जंग के बाद से जिस तरह रूस का चीन ने साथ दिया है, ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन भी युद्ध का रास्ता अपना सकता है। और ऐसा करने पर उसे रूस का साथ मिलेगा।

ताइवान और चीन के बीच विवाद की शुरूआत 1949 से शुरू होती है। जब 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल कर राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया। और हार के बाद सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के लोगों को भागना पड़ा। कुओमिंतांग पार्टी के सदस्यों को ताइवान में जाकरण शरण लेनी पड़ी और वहीं पर उन्होंने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। उसी वक्त से चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान के लोग अपने को आजाद मुल्क मानते हैं।

ताइवान को अमेरिका का साथ

 ताइवान की भौगोलिक स्थिति उसे रणनीतिक रूप से बेहद अहम बनाती है।दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील की दूरी पर ताइवान स्थित है। और अगर इस पर चीन का कब्जा हो जाता है। तो गुआम और हवाई द्वीप पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने सीधे चीन के निशाने पर आ जाएंगे। इसके अलावा पश्चिमी प्रशांत महासागर में चीन को खुला रास्ता भी मिल सकता है। जो सीधे तौर पर अमेरिकी हितों को प्रभावित करेगा। इसीलिए अमेरिका ताइवान का समर्थन करता रहता है। और उसे सैन्य सहायता से लेकर कूटनीतिक मदद तक करता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका (AUKUS) का समझौता भी प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाता है। इस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को पहली बार परमाणु पनडुब्बी हासिल होगी। साथ ही ताइवान के इलाके में दक्षिण कोरिया, जापान, फिलीपींस जैसे देश अमेरिका के साथ हैं। 

चीन और ताइवान की सैन्य ताकत का मुकाबला नहीं

ग्लोबल फॉयर पावर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार चीन दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत है। जबकि ताइवान 21 वीं बड़ी सैन्य ताकत है। चीन के पास 20 लाख सक्रिय सैनिक हैं। जबकि ताइवान के पास 1.70 लाख सैनिक हैं। इसी तरह चीन के पास 3285 एयर क्रॉफ्ट हैं। जबकि ताइवान के पास 751 एयर क्रॉफ्ट हैं। चीन के पास 281 अटैक हेलिकॉप्टर हैं तो ताइवान के पास 91 अटैक हेलिकॉप्टर हैं। चीन के पास 79 पनडुब्बियां हैं जबकि ताइवान के पास 4 पनडुब्बियां हैं। जाहिर है ताइवान अपने दम पर चीन से मुकाबला नहीं कर पाएगा। लेकिन अगर यूक्रेन की तरह ताइवान को अमेरिका सहित दूसरे देशों का साथ मिला तो रूस-यूक्रेन जैसे लंबे युद्ध के हालात बन सकते हैं।

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युद्ध होने पर खड़ा हो जाएगा चिप का संकट

अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है तो रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह, दुनिया के सामने नया संकट खड़ा हो सकता है। जैसे अभी खाद्यान्न संकट है, ठीक उसी तरह पूरी दुनिया के सामने चिप का संकट खड़ा हो सकता है। असल में पूरी दुनिया  चिप के लिए ताइवान के भरोसे हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, दुनिया का 92 फीसदी एडवांस सेमीकंडक्टर का उत्पादन करती है। इसी तरह की एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सेमीकंडक्टर से होने वाली कुल कमाई का 54 फीसदी हिस्सा ताइवान की कंपनियों के पास है। जाहिर है कि युद्ध के हालात में दुनिया में मोबाइल फोन, लैपटॉप , ऑटोमोबाइल, हेल्थ केयर, हथियारों आदि उत्पादों का उत्पादन संकट में पड़ जाएगा।


 

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