Polio: पाकिस्तान में पोलियो आज भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या, अभी भी लोग दवा के टीके लगवाने का विरोध करते हैं

दुनिया
एजेंसी
Updated Aug 24, 2020 | 20:51 IST

Polio cases in Pakistan:पोलियो दुनिया के ज़्यादातर देशों में ख़त्म की जा चुकी है मगर भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में ये समस्या अभी भी बरकरार है।

Contesting rumors in polio challenge in Pakistan
प्रतीकात्मक फोटो 

इन्सान को अपाहिज बना देने वाली, और कभी-कभी तो जानलेवा साबित होने वाली बीमारी पोलियो दुनिया के ज़्यादातर देशों में ख़त्म की जा चुकी है, मगर पाकिस्तान में ये अब भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि पाकिस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा पोलियो से बचाने वाली दवा के टीके लगवाने का विरोध करता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनीसेफ़ ने पाकिस्तान में पोलियो को जड़ से मिटाने और लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाने के लिये एक ताज़ा अभियान शुरू किया है। ये अभियान चलाने वाली टीम के एक सदस्य और स्वास्थ्यकर्मी डेनिस चिमेन्या ने यूएन न्यूज़ के साथ ख़ास बातचीत की।

डेनिस चिमेन्या यूनीसेफ़ की संचार गतिविधियों के मुखिया भी हैं। उन्होंने उन समस्याओं के बारे में बताया जिनका सामना उन्हें और उनके सहयोगियों को कोविड-19 महामारी के वातावरण में पोलियो टीकाकरण के अहम स्वास्थ्य फ़ायदों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के दौरान करना पड़ता है।

“मलावी में एक नौजवान लड़के के रूप में परवरिश पाते समय मुझे याद है कि मैं अपने समुदाय पर रेडियो के सकारात्मक प्रभाव को देखकर कितना प्रभावित हुआ था। और इसी ने मुझे एक प्रसारक बनने के लिये प्रेरित किया। जब तक मैंने अपनी डिग्री की शिक्षा पूरी की, तो विहीनता और एचआईवी, व एड्स का सामाजिक प्रभाव एक बोझ बन चुका था। और लोगों के बर्ताव में बदलाव बहुत साफ़ नज़र आने लगा था। इसलिये मैंने सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार क्षेत्र में काम करना शुरू किया।”

मैंने अपने करियर के शुरू में अफ्रीका में अन्तरराष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करना शुरू किया जो एचआईवी/एड्स, मातृत्व व बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे थे। यूनीसेफ़ में कामकाज शुरू करने के बाद से मेरा ज़्यादा ध्यान स्वास्थ्य संचार पर रहा है। इस दौरान मैंने ईबोला जैसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदाओं के अलावा पोलियो टीकाकरण अभियानों में भी सक्रिय काम किया है।

पोलियो की आख़िरी चुनौती

पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दो ऐसे देश बचे हैं जहाँ पोलियो अब भी एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती के रूप में मौजूद है। इन दोनों देशों में पोलियो से बचाने वाली दवा के टीके लगवाने से बचना, इस बीमारी को जड़ से मिटाने के रास्ते में एक बड़ी बाधा है।कुछ समुदायों में अभिभावक कुछ अफ़वाहों और अपनी आस्थावों व राय के कारण पोलियो से बचाने वाली दवा के टीके लगवाने से इनकार कर देते हैं।मेरा काम ऐसी गतिविधियाँ चलाने का जिनके ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा लोग टीकाकरण को स्वीकार करें, जिसके ज़रिये अन्ततः पोलियो को देश से पूरी तरह ख़त्म करने में कामयाबी मिलेगी।

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में टीकाकरण की बदौलत ही लाखों बच्चों को अपाहिज होने और ज़िन्दगी भर तकलीफ़ उठाने से बचा लिया गया है। साथ ही टीकाकरण की बदौलत ही दुनिया के अनेक हिस्सों में पोलियो के संक्रमण पर क़ाबू पाने में मदद मिली है और वो देश अब इस बीमारी से मुक्त हो चुके हैं।

हमारी उपलब्धियों के बावजूद, मुझे तब बहुत तकलीफ़ होती है जब मैं किसी बच्चे को पोलियो के कारण अपाहिज हुआ देखता हूँ क्योंकि हम माता-पिता व अभिभावकों को टीकाकरण के लिये राज़ी नहीं कर पाते हैं।हमेशा ये ख़याल ज़ेहन में कौंधता रहता है कि हमें माता-पिता को टीकाकरण के वास्ते राज़ी करने के लिये और ज़्यादा कोशिशें करनी चाहिये थीं, और बच्चे को तकलीफ़ से बचाया जा सकता था।

कोविड-19 से जूझने में मदद

ये अभियान केवल पोलियो के बारे में नहीं है। ये दरअसल कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बनाने और बच्चों को व्यापक दायरे वाली ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के बारे में भी है। इनमें बच्चों को विटामिन-ए की अतिरिक्त ख़ुराक या उनके पेट में कीड़े मारने वाली गोलियाँ मुहैया कराने के बारे में भी है। कुछ ज़्यादा जोखिम वाले इलाक़ों में हम बुनियादी जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य सेवाएँ भी मुहैया कराते हैं, जो अन्यता उपलब्ध नहीं होती हैं। इन सेवाओं की बदौलत शायद बहुत से बच्चों को मौत से बचाया जा सका है।

पाकिस्तान के लाहौर में एक स्वास्थ्यकर्मी एक बच्चे की उँगली का निशान दिखाते हुए कि उस बच्चे को पोलियो से बचाने वाली दवा पिला दी गई है और हमने पाकिस्तान में कोविड-19 महामारी से मुक़ाबला करने की जद्दोजहद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम अग्रिम मोर्चे पर सहायता करने वालों में शामिल रहे हैं और हमने स्वास्थ्य व्यवस्था को आबादी तक सेवाएँ और सुविधाएँ मुहैया कराने में भी मदद की है।

इस महामारी का मतलब है कि मुझे नियमित आपदा कामकाज से हटकर एक अनजान आपदा का मुक़ाबला करने में कामकाज करना पड़ा है। हमें ये जानने, समझने और शोध करने में बहुत तेज़ी से काम लेना पड़ा कि कोरोनावायरस आख़िर है क्या, क्योंकि लोग जानकारी के लिये हमारे पास आ रहे थे। ये काम बहुत ज़्यादा अपेक्षा करने वाला, बहुत व्यस्त और बहुत दबाव वाला था। लेकिन आख़िर में, पाकिस्तान में जैसे-जैसे हालात स्थिर हुए, हमारे योगदान के बारे में एक सन्तोष व फ़ख़्र की भावना देखने को मिली।

पाकिस्तान के विकासशील देश है, जहाँ की आबादी अनेक तरह की विहीनता का सामना कर रही है। मैं पुरउम्मीद हूँ कि दुनिया में कभी ऐसी स्थिति बन सकेगी जब हर बच्चे के सामने की बाधाएँ ख़त्म हो जाएँगी: जब, अभी से उलट, पाकिस्तान के दूरदराज़ के इलाक़ों में भी पैदा होने वाले बच्चे को अपनी भरपूर क्षमताओं को विकसित करने का मौक़ा मिलेगा और सभी ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ भी उपलब्ध होंगी। हाँ, मुझे ये डर भी है कि समाज को उस मुक़ाम पर पहुँचने के लिये अभी बहुत समय लगेगा।

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