रॉबर्ट सी ओ ब्रायन बने अमेरिका के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, ट्रंप ने की नियुक्ति 

दुनिया
Updated Sep 19, 2019 | 01:00 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Robert C. O'Brien is America new NSA : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रॉबर्ट सी ओ ब्रायन को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त किया है। ट्रंप ने नए एनएसए की नियुक्ति के बारे में ट्वीट किया है।

Donald Trump appoints Robert C. O'Brien as National Security Advisor
अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति की।  |  तस्वीर साभार: AP
मुख्य बातें
  • रॉबर्ट सी ओ ब्रायन अमेरिका के बनाए गए नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
  • जॉन बोल्टन को एनएसए पद से ट्रंप ने हटाया था
  • उत्तर कोरिया पर बोल्टन की नीति से डोनाल्ड ट्रंप थे नाराज

वाशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रॉबर्ट सी ओ ब्रायन को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त किया है। ब्रायन, जॉन बोल्टन की जगह लेंगे। ट्रंप ने पिछले सप्ताह बोल्टन को एनएसए के पद से हटाया था। ब्रायन इससे पहले विदेश मंत्रालय में बंधक मामलों में राष्ट्रपति के विशेष दूत के तौर पर कार्य कर रहे थे। ब्रायन की नियुक्ति पर ट्रंप ने बुधवार को ट्वीट किया। 

अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने ट्वीट में कहा, 'मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि विदेश मंत्रालय में बंधक मामलों के राष्ट्रपति के विशेष दूत के रूप में कामयाबी के साथ सेवा दे रहे रॉबर्ट सी. ओ ब्रायन हमारे अगले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होंगे। मैंने रॉबर्ट के साथ काफी लंबा एवं गंभीर काम किया है। वह इस पद पर शानदार काम करेंगे!' बता दें कि ब्रायन रिपब्लिक पार्टी की विदेश नीति के मामलों से काफी समय से जुड़े रहे हैं।

 

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्हें उमीद है कि नए एनएसए अमेरिका के हित में बेहतरीन तरीके से काम करेंगे। इससे पहले एनएसए रहे जॉन बोल्टन के संबंध में उन्होंने कहा था कि जिस अपेक्षा के साथ उनका चयन किया गया था उस पर वो खरे नहीं उतरे। जानकार कहते हैं कि जॉन बोल्ट के सख्त विचारों की वजह से ट्रंप प्रशासन को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। खासतौर से उत्तर कोरिया के संदर्भ में वो बोल्टन की नीति से सहमत नहीं थे। दरअसल बोल्ट की सोच ये थी कि किम जोंग उन से निपटने के लिए लीबिया मॉडल का उपयोग करना चाहिए। लेकिन ट्रंप प्रशासन का मानना था कि बोल्ट की सोच व्यवहारिक नहीं थी और उनकी वजह से उत्तर कोरिया अमेरिका के संबंधों में मजबूती नहीं आई। 

 

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