Guru Nanak Dev: सीमा पार तक फैला है गुरु नानक देव का 'प्रकाश', जानें PAK में हैं कौन-कौन से खास गुरुद्वारे

Gurudwaras in Pakistan: करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब जहां सिखों के लिए बेहद खास है, वहीं पाकिस्‍तान में और भी कई गुरुद्वारे हैं, जिन्‍हें सिख समुदाय के लोग बेहद पवित्र मानते हैं।

Nankana Sahib Gurudwara in Pakistan lit up ahead of Guru Nanak Dev's 550th birth anniversary
550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्‍य में रोशनी से नहाया गुरुद्वारा ननकाना सा‍हिब  |  तस्वीर साभार: ANI

Guru Nanak Dev, Gurudwaras in Pakistan: सिख धर्म के संस्‍थापक गुरुनानक देव की जयंती यूं तो हर साल धूमधाम से मनाई जाती है, पर इस संदर्भ में 2019 कई मायनों में खास है। इस बार गुरुनानक देव की 550वीं जयंती (प्रकाश पर्व) मनाई जा रही है, जिस दौरान भारत और पाकिस्‍तान के बीच वर्षों से लंबित करतारपुर कॉरिडोर पर सहमति बनी। करतारपुर भारत सहित दुनियाभर के सिख श्रद्धालुओं के लिए खास है तो यहां कई अन्‍य गुरुद्वारे भी हैं, जिनसे सिखों का भावनात्‍मक लगाव रहा है। 

गुरुद्वारा ननकाना साहिब
गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है, जहां 1469 में गुरु नानक देव का जन्‍म हुआ था। तब यह अव‍िभाजित भारत का हिस्‍सा था, जो 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्‍तान चला गया। लाहौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर यह गुरुद्वारा सिखों के लिए पवित्र स्‍थल है। इसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। पूर्व में इसका नाम 'राय-भोई-दी-तलवंडी' था, लेकिन बाद में इसे ननकाना साहिब नाम दिया गया। यहां तड़के 3 बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो जाता है, जो गुरुग्रंथ साहिब को मत्था टेककर यहां शबद-कीर्तन में हिस्‍सा लेते हैं।

गुरुद्वारा पंजा साहिब
पाकिस्‍तान में एक अन्‍य लोकप्रिय गुरुद्वारा पंजा साहिब है। सिखों के पवित्र स्‍थलों में यह भी सबसे ऊपर रखा जाता है। रावलपिंडी से करीब 48 किलोमीटर दूर इस जगह के बारे में ऐसी मान्‍यता है कि एक बार गुरु नानक देव जब ध्यान में थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से एक विशाल पत्थर उन पर फेंका। पत्थर हवा में उनकी तरफ बढ़ रहा था कि अचानक ही उन्‍होंने अपना पंजा उठाया, जिसके बाद पत्थर वहीं रुक गया। पंजे से पत्थर को रोकने के कारण ही इस गुरुद्वारे का नाम 'पंजा साहिब' पड़ा। मान्‍यता है कि उस पत्‍थर पर गुरु नानक देव की हथेली के निशान हैं।

गुरुद्वारा रोरी साहिब
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एमिनाबाद का गुरुद्वारा रोरी साहिब भी सिखों के पवित्र धार्मिक स्‍थलों में गिना जाता है। मान्‍यता है कि 1521 में जब बाबर ने अपनी सेना से साथ यहां पहुंचकर तबाही मचाई तब गुरु नानक देव ने यहीं शरण ली थी। गुरु नानक देव ने यहां एक चमकते हुए पत्‍थर पर बैठकर ध्‍यान लगाया था और वहीं से रोरी शब्‍द आया है, जिसका पंजाबी में अर्थ पत्‍थर होता है। यह गुरुद्वारा उसी पत्‍थर पर बना है।

गुरुद्वारा डेरा साहिब, लाहौर
लाहौर स्थित गुरुद्वारा डेरा साहिब सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के अंतिम स्‍थल के रूप में जाना जाता है। यह गुरुद्वारा लाहौर किला, हजूरी बाग चौरा और रोशनी गेट जैसे स्‍मारकों के बीच है।

गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर
गुरुद्वारा दरबार साहिब पाकिस्‍तान पंजाब प्रांत के नरोवाल जिले में स्थित करतारपुर में है। यह सिखों के लिए बेहद खास है, जो इस जगह को गुरु नानक देव की कर्मस्‍थली के रूप में देखते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम तकरीबन 17-18 साल यहीं बिताए थे और यहीं 1539 में 'जोति जोत' (निधन) हासिल किया। करतारपुर कॉरिडोर इसी गुरुद्वारे को भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा से जोड़ेगा।

गुरुद्वारा बेर साहिब
गुरुद्वारा बेर साहिब पाकिस्‍तान के पंजाब प्रांत में स्थित सियालकोट में है। ऐसी मान्‍यता है कि गुरुनानक देव यहीं संत हजरत हमजा गौस से मिले थे। वह यहां बेर के एक पेड़ के नीचे वक्‍त बिताया करते थे। माना जाता है कि वह पेड़ आज भी गुरुद्वारा परिसर में मौजूद है।

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