Sri Lanka: महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली

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Updated Aug 09, 2020 | 14:46 IST

Mahinda Rajapaksa sworn: श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर में रविवार को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली।

Mahinda Rajapaksa sworn in as Prime Minister of Sri Lanka
महिंदा राजपक्षे नीत एसएलपीपी ने पांच अगस्त के आम चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल करते हुए संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल किया 

कोलंबो: श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के 74 वर्षीय नेता को नौंवी संसद के लिए पद की शपथ उनके छोटे भाई एवं राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने केलानिया में पवित्र राजमाहा विहाराय में दिलाई।महिंदा राजपक्षे ने इस साल जुलाई में संसदीय राजनीति में 50 वर्ष पूरे किए। वह 1970 में महज 24 साल की उम्र में सांसद निर्वाचित हुए थे। उसके बाद से वह दो बार राष्ट्रपति चुने गए और तीन बार प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए।

महिंदा राजपक्षे नीत एसएलपीपी ने पांच अगस्त के आम चुनाव में जबरदस्तमहिंदा राजपक्षे नीत एसएलपीपी ने पांच अगस्त के आम चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल करते हुए संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल किया जीत हासिल करते हुए संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल किया। इस बहुमत के आधार पर वह संविधान में संशोधन कर पाएगी जो शक्तिशाली राजपक्षे परिवार की सत्ता पर पकड़ को और मजबूत बनाएगा।महिंदा को 5,000,00 से अधिक व्यक्तिगत वरीयता के मत मिले। चुनावी इतिहास में पहली बार किसी प्रत्याशी को इतने मत मिले हैं।

कैबिनेट मंत्रियों, राज्य मंत्रियों एवं उपमंत्रियों को सोमवार को शपथ दिलाई जा सकती है
एसएलपीपी ने 145 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दर्ज करते हुए अपने सहयोगियों के साथ कुल 150 सीटें अपने नाम कीं जो 225 सदस्यीय सदन में दो तिहाई बहुमत के बराबर है। कैबिनेट मंत्रियों, राज्य मंत्रियों एवं उपमंत्रियों को सोमवार को शपथ दिलाई जा सकती है।श्रीलंकाई राजनीति में राजपक्षे परिवार का दो दशक से वर्चस्व है। इसमें एसएलपीपी के संस्थापक एवं इसके राष्ट्रीय संयोजक 69 वर्षीय बासिल राजपक्षे भी शामिल हैं जो 71 वर्षीय गोटबाया राजपक्षे और मंहिदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं।

महिंदा राजपक्षे इससे पहले 2005 से 2015 तक करीब एक दशक तक राष्ट्रपति रहे हैं
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में एसएलपीपी की टिकट पर जीत दर्ज की थी।संसदीय चुनाव में, वह 150 सीटें प्राप्त करना चाह रहे थे जो संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक थीं। इन बदलावों में संविधान के 19वें संशोधन को निरस्त करना शामिल था जो संसद की भूमिका को मजबूत करते हुए राष्ट्रपति की शक्तियों को प्रतिबंधित करता है।

द्वीप देश में असहमति और आलोचना के लिए कम होती गुंजाइश पहले से ही चिंतित कार्यकर्ताओं को भय है कि इस कदम से निरंकुशता न आ जाए।इन चुनावों में सबसे ज्यादा नुकसान पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को हुआ जिसे केवल एक सीट नसीब हुई।

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