सड़कों पर बख्‍तरबंद गाड़ियां, प्रदर्शनकारियों पर गोली, अपने ही लोगों का 'खून' बहा रही म्‍यांमार की सेना

म्‍यांमार में बड़ी संख्‍या में लोग लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं तो उन्‍हें सेना के दमन का सामना भी करना पड़ रहा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इसे 'खूनी' करार दिया है।

सड़कों पर बख्‍तरबंद गाड़ियां, प्रदर्शनकारियों पर गोली, अपने ही लोगों का 'खून' बहा रही म्‍यांमार की सेना
सड़कों पर बख्‍तरबंद गाड़ियां, प्रदर्शनकारियों पर गोली, अपने ही लोगों का 'खून' बहा रही म्‍यांमार की सेना  |  तस्वीर साभार: AP, File Image

यांगून : म्‍यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्‍य तख्तापलट के बाद विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है। सेना की दमनात्‍मक कार्रवाई के बावजूद बड़ी संख्‍या में लोग लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं और अपनी नेता आंग सान सू ची की रिहाई की मांग कर रहे हैं। इन विरोध-प्रदर्शनों के बीच म्‍यांमार की सेना अपने ही लोगों का खून बहा रही है। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सैन्‍य कार्रवाई में यहां अब तक 50 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।

म्‍यांमार में सेना का सबसे हिंसक रूप बुधवार को सामने आया, जब लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई में एक ही दिन में कम से कम 38 लोगों की जान चली गई। यहां प्रदर्शनकारियों के खिलाफ 3 मार्च को हुई व्‍यापक हिंसा को देखते हुए संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इसे 'खूनी बुधवार' करार दिया है तो यह भी कहा कि म्‍यांमार की सड़कों से जो फुटेज सामने आ रहे हैं, वे दिल दहला देने वाले हैं। सुरक्षा बलों पर भीड़ के खिलाफ रबर की गोलियों की बजाय लाइव बुलेट के इस्‍तेमाल का आरोप भी लग रहा है।

लाइव बुलेट का इस्‍तेमाल!

लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे इन प्रदर्शनकारियों ने आंग सान सू ची सहित म्‍यांमार के सभी निर्वाचित नेताओं को रिहा करने की मांग की है। सेना ने पूर्व में इन्‍हें 15 दिनों के लिए हिरासत में लेने की बात कही थी, लेकिन अब सैन्‍य तख्‍तापलट के एक महीने से भी अधिक का समय बीत जाने के बावजूद यहां सू ची सहित जनता द्वारा चुने गए नेताओं को रिहा नहीं किया गया है और न ही उनके बारे में किसी तरह की आधिकारिक जानकारी दी गई है।

म्यांमार में तख्‍तापलट के बाद सड़कों पर जगह-जगह बख्‍तरबंद गाड़ि‍यां नजर आ रही हैं। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सेना के रुख को देखते हुए संयुक्‍त राष्‍ट्र ने पिछले दिनों म्‍यांमार की सेना पर 'अपने ही लोगों के खिलाफ जंग' के एलान का आरोप लगाया था तो अब एक बार फिर वैश्विक संस्‍था ने म्‍यांमार की सेना को सवालों के घेरे में खड़ा किया है। म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की राजदूत क्रिस्टीन श्रेनर ने वीडियो फुटेज का हवाला देते हुए सेना पर चिकित्‍सा क्षेत्र से जुड़े निहत्थे लोगों को पीटने का आरोप लगया है।

क्रिस्टीन श्रेनर ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुरक्षा बलों द्वारा लाइव बुलेट के इस्‍तेमाल के आरोपों की शीर्ष स्‍तरीय जांच कराने पर भी जोर दिया। चिकित्‍सा क्षेत्र से जुड़े कई स्‍वयंसेवियों ने आरोप लगाया है कि भीड़ के खिलाफ सेना आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट के साथ-साथ लाइव बुलेट का इस्तेमाल का आरोप भी लगाया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, एक प्रदर्शनकारी ने सेना को लेकर कहा, 'ये हमें पानी की बौछारों से तितर-बितर नहीं कर रहे और न ही चेतावनी दे रहे। ये सीधे गोली दाग रहे हैं।'

1 फरवरी को हुआ था तख्‍तापलट

यहां उल्‍लेखनीय है कि म्यांमार में साल 1962 से करीब पांच दशकों तक सैन्‍य शासन रहा था। 1990 के दशक में आंग सान सू ची ने म्यांमार के सैन्य शासन को चुनौती दी थी। घरेलू और अंतरराष्‍ट्रीय दबाव के बीच यहां 2011 में दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था, जब सेना जनता द्वारा चुनी गई सरकार को चरणबद्ध तरीके से सत्‍ता सौंपने के लिए राजी हो गई थी। 2015 में यहां हुए चुनाव में आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी को जबदस्‍त जीत मिली।

आंग सान सू ची म्‍यांमार की स्‍टेट काउंसलर बनीं। हालांकि म्‍यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्‍याचार को लेकर उनकी चुप्‍पी पर सवाल भी उठे और उनकी खूब आलोचना हुई। तब बड़ी संख्‍या में रोहिंग्‍या मुसलमानों ने पलायन कर बांग्‍लादेश में शरण ली थी। बाद में नवंबर 2020 में हुए चुनाव में भी सू ची की पार्टी एनएलडी को 80 फीसदी से अधिक वोट मिले, लेकिन सेना ने धांधली का आरोप लगाते हुए चुनी हुई सरकार को 1 फरवरी, 2021 को हटाकर सत्‍ता अपने हाथों में ले ली।
 

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