वाशिंगटन : आज अमेरिका दुनियाभर में एक महाशक्ति के तौर पर जाना जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब दुनिया दो ध्रुवीय व्यवस्था में बंटी नजर आई तो तत्कालीन सोवियत संघ के अतिरिक्त अन्य बड़ी ताकत के रूप में जो देश सामने आया, वह अमेरिका ही था। फिर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरा और उसकी वह स्थिति आज भी बरकार है।
मौजूदा परिदृश्य में अमेरिका की जो स्थिति है, उसे देखते हुए यह यकीन कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल प्रतीत होता है कि आज का यह ताकतवर मुल्क भी कभी ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत एक उपनिवेश रह चुका है, जैसा कि भारत और दुनिया के कई अन्य देश थे। 13 अमेरिकी कॉलोनियों में ब्रिटिश औपनिवेशक साम्राज्य की नींव 17वीं और 18वीं सदी में रखी गई थी, जो आज अमेरिका का हिस्सा हैं।
इन 13 अमेरिकी कॉलोनियों में 1775 से लेकर 1781 तक स्वतंत्रता के लिए ऐसी जंग छिड़ी कि अंतत: ये ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी की जंजीरों को तोड़कर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के रूप में सामने आए। अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम ने आगे चलकर वैश्विक राजनीति पर गहरा असर डाला और दुनिया के कई हिस्सों ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आंदोलन और संघर्ष का दौर शुरू हो गया।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के यूं तो कई राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, भौगोलिक, बौद्धिक और आर्थिक कारण हैं, लेकिन इसके तात्कालिक कारणों में बोस्टन की टी-पार्टी को गिना जाता है। यह वह दौर था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही थी। ईस्ट इंडिया कंपनी को वित्तीय संकट से उबारने के लिए ब्रिटेन की तत्कालीन सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसमें कई चीजों पर कर लगाया गया।
ब्रिटिश संसद ने 1765 में स्टाम्प एक्ट पास किया, जिसके तहत नॉर्थ अमेरिकी कॉलोनी में हर तरह के कागज पर टैक्स लगा दिया गया, जिनमें बुनियादी जरूरत की चीजें भी शामिल थीं। इस पूरी प्रक्रिया में अमेरिकी कॉलोनी के किसी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया था। ऐसे में उन्होंने इसका विरोध करते हुए 'प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं' का नारा दिया। भारी विरोध के बाद इस कानून को वापस ले लिया गया।
ब्रिटेन की संसद ने 1773 को एक अन्य कानून लाया, जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को सीधे अमेरिका में चाय बेचने की छूट मिली। उन्हें लंदन में किसी तरह का टैक्स देने की जरूरत नहीं थी। लेकिन जो एजेंट पहले लंदन से चाय लेकर अमेरिका जाते थे, उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। इसी दौरान 16 दिसंबर 1773 को बोस्टन बंदरगाह पर ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज में भरी हुई चाय की पेटियों को समुद्र में फेंक दिया गया। इतिहास में इसी घटना को बोस्टन की टी-पार्टी कहा जाता है।
इस घटना के बाद ब्रिटिश संसद ने अमेरिकी उपनिवेशों के लिए कई कड़े व दमनकारी कानून लागू किए, जिसका व्यापक विरोध शुरू हो गया और स्वशासन बहाल करने की मांग की जाने लगी। इसके साथ अमेरिकी में स्वाधीनता के लिए संघर्ष शुरू हो गया और 4 जुलाई 1976 को अमेरिकी उपनिवेशों को ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी मिल गई। वह अमेरिका आज दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के तौर पर जाना जाता है।