टॉप तालिबान लीडर्स में अनबन! इन दो देशों ने भेजे 'दूत', तालिबान कैबिनेट को सबसे पहले दे सकते हैं मान्‍यता

अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में काबिज तालिबान के टॉप लीडर्स में अनबन की खबरों के बीच दो देश इसके लिए जबरदस्‍त लॉबिंग कर रहे हैं तो भारत ने पड़ोसी मुल्‍क पाकिस्‍तान की भूमिका को लेकर संशय जाहिर किया है।

तालिबान कैबिनेट को सबसे पहले मान्‍यता दे सकते हैं ये 2 देश
तालिबान कैबिनेट को सबसे पहले मान्‍यता दे सकते हैं ये 2 देश  |  तस्वीर साभार: AP, File Image

काबुल : अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में आने के बाद से तालिबान को लेकर भारत चौकस बना हुआ है तो पाकिस्‍तान, चीन, तुर्की सहित कई देश इसे लेकर पूरी दुनिया में लॉबिंग करते भी नजर आ रहे हैं। इस बीच यहां नई सरकार के गठन के बाद गुटबाजी की खबरें भी हैं, जिसमें अहम मुद्दा महत्‍वपूर्ण मंत्रालयों और शीर्ष पदों को हक्‍कानी नेटवर्क और कंधार के तालिबान समूह को दिए जाने का है। बताया जा रहा है कि तालिबान के टॉप लीड‍रशिप में अनबन की इन खबरों के बीच पाकिस्‍तान और कतर ने यहां अपने 'दूत' भी भेजे हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्‍तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (ISI) के चीफ लेफ्टिनेंट फैज हमीद का सितंबर की शुरुआत में किया गया काबुल दौरा भी सरकार गठन और मंत्रालयों व पदों के बंटवारे को लेकर तालिबान व सरकार में शामिल अन्य समूहों के बीच अनबन‍ के सिलसिले में ही था, जबकि इसके एक सप्‍ताह बाद ही कतर के विदेश मंत्री मोहम्‍मद बिन अब्‍दुरहमान अल-थान्‍वी ने भी काबुल का दौरा कर तालिबान की ओर से प्रधानमंत्री नियुक्‍त मोहम्‍मद हसन अखुंद सहित समूह के कई नेताओं से बात की थी।

ये दो देश कर रहे लॉबिंग!

समझा जा रहा है कि ISI चीफ ने काबुल में अंतरिम सरकार के गठन में तालिबान समूहों के बीच अनबन को दूर करने और उन्‍हें एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। इसके तहत तालिबान के उन नेताओं को किनारे भी करने की कोशिश हुई, जिन्‍हें मौजूदा समय में अपेक्षाकृत थोड़ा प्रगतिशील समझा जाता है। अफगानिस्‍तान में नई हुकूमत के आने के बाद से भारत सहित दुनिया के कई देशों की सुरक्षा चिंताओं के बीच पाकिस्‍तान और कतर तालिबान के लिए लॉबिंग करने में जुटे हैं और ये दोनों तालिबान कैबिनेट को मान्‍यता देने वाले दुनिया के पहले देश हो सकते हैं।

यहां उल्‍लेखनीय है कि कतर की राजधानी दोहा में ही 29 फरवरी, 2020 को वह समझौता हुआ था, जिसके बाद यहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी सुनिश्‍च‍ित हुई। अमेरिका में तब डोनाल्‍ड ट्रंप राष्‍ट्रपति थे।

क्‍या हैं भारत की चिंताएं?

अफगानिस्‍तान के घटनाक्रम पर तुर्की की भी नजर बनी हुई है, जिसने यहां से अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद काबुल एयरपोर्ट पर विमानों की आवाजाही सुन‍िश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने अफगानिस्‍तान में तालिबान की 'व्‍यवस्‍था' को मान्‍यता देने को लेकर अंतरराष्‍ट्रीय समूह को आगाह किया है और कहा कि यह न तो समावेशी है और न ही सभी पक्षों से बातचीत के आधार पर बनाई गई है। भारत ने अफगानिस्‍तान में पाकिस्‍तान की भूमिका और तालिबान को प्रभावित करने की इसकी कोशिशों को लेकर भी चिंता जताई है।

अगली खबर