SCO Meeting: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सम्मेलन 15 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस सम्मेलन में दुनिया के तीन दिग्गज देशों के प्रमुख करीब तीन साल बाद एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे। लेकिन यह तीनों देश सामान्य परिस्थितियों में नहीं मिल रहे हैं। एक तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतिन, लंबे खिचे यूक्रेन युद्ध से दबाव में हैं, तो दूसरी तरह चीन के राष्ट्पति शी जिनपिंग ताइवान विवाद और भारत के साथ रिश्तों के लेकर सवालों के घेरे में हैं। इन विवादों का असर है कि अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बात-चीत को लेकर असमंजस बना हुआ है।
क्या है शंघाई सहयोग संगठन
शंघाई सहयोग संगठन में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान ,कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और शामिल हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान, बेलारूस,मंगोलिया पर्यवेक्षक देश के रूप में शामिल हैं। साल 2021 में यह फैसला लिया गया था कि ईरान को पूर्ण सदस्य बनाया जाएगा। और इस बार वह पूर्ण सदस्य बन जाएगा। रूस की न्यूज एजेंसी TASS ने भी बात की पुष्टि की है। उसके अनुसार ईरान के विदेश मंत्री नसीर कन्नानी ने कहा है कि इस बार के सम्मेलन में ईरान सदस्य के रूप में समझौते पर हस्ताक्षर करेगा।
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ईरान-रूस-चीन अमेरिका के विरोधी
एससीओ में ईरान की एंट्री के बाद अब रूस, चीन को अमेरिका का विरोध करने वाला एक और देश मिल जाएगा। जबकि पाकिस्तान चीन का पिछलग्गू है। ऐसे में भारत के लिए इस संगठन में बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है। क्योंकि अमेरिका से भारत के रिश्ते बेहतर हैं। साथ ही ईरान और भारत के रिश्ते भी अमेरिकी दबाव के बावजूद मजबूत हैं। और इसी का नतीजा है कि रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईरान ने कहा है कि भारत जिस तरह से रूस के मामले में अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज कारोबार जारी रखा है। उसी तरह उसके साथ वह कारोबार करें और तेल खरीदे। ऐसे में इस बात की संभावना है कि ईरान बैठक के दौरान, भारत से इस बात की मांग करे। भारत मई 2019 से ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया था। प्रतिबंध से पहले, भारत चीन के बाद ईरानी से तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार था।
पुतिन से मीटिंग और पाकिस्तान से दूरी
शंघाई संगठन की बैठक में भले ही जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग को लेकर अटकले हैं, लेकिन एक बात साफ हो गई है कि मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात होगी। साथ ही पाकिस्तान के साथ किसी तरह की कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी।
एससीओ संगठन में दुनिया की कुल आबादी का 40 फीसदी रहती हैं। इसके अलावा दुनिया की कुल जीडीपी का 30 प्रतिशत एससीओ के देशों का है। इसके साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के रूप में भी संगठन के कई देश काफी संपन्न हैं। ऐसे में भारत के लिए मौजूदा वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए अपनी हितों को साधने की चुनौती है।