नई दिल्ली: रूस द्वारा यूक्रेन (Ukraine) के विद्रोहियों के कब्जे वाले लुहांस्क और डोनेस्टक प्रांत को स्वतंत्र देश की मान्यता देना और फिर उसकी संसद द्वारा पुतिन को देश के बाहर सैन्य आक्रमण की अनुमति देने से साफ है कि राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन एक तय एजेंडे पर काम कर रहे हैं। और उन पर पश्चिमी देशों खास कर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों के आर्थिक प्रतिबंधों और चेतावनियों का कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि दुनिया की 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था क्या आर्थिक प्रतिबंधों से लड़ने के लिए तैयार है। साथ ही ऐसी क्या कूटनीति है जिसके जरिए पुतिन कदम पीछे खीचने के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं।
अब तक क्या लगे प्रतिबंध
हांस्क और डोनेस्टक प्रांत को स्वतंत्र देश की मान्यता देने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिए हैं। इसके तहत अमेरिका ने रूस सॉवरेन डेट पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ रूस के प्रतिष्ठित परिवारों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही हैं। जिसमें रूस के राष्ट्रपित व्लादिमिर पुतिन का भी नाम शामिल हो सकता है। इसके अलावा ब्रिटेन ने रूस के 5 प्रमुख बैंकों और रूस के तीन रईसों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी तरह जर्मनी ने रूस से जर्मनी तक गैस सप्लाई के लिए बना नॉर्ड-2 पाइपलाइन प्रोजेक्ट को रोक दिया है।
इसके अलावा कनाडा के पीएम जस्टिन टूडो ने मंगलवार को रूस पर पहले राउंड की पाबंदियों का ऐलान किया। रूस ने यूक्रेन के जिन प्रांतों को स्वतंत्र घोषित किया है, उनसे कोई भी आर्थिक समझौते नहीं होंगे। इसके अलावा रूसी बॉन्ड की खरीद पर भी रोक लगाई जाएगी। यही नहीं उन रूसी सांसदों पर भी पाबंदियां लगाई जाएंगी, जिन्होंने डोनेत्सक और लुहान्सक को स्वतंत्र राज्य घोषित करने के प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया है।
रूस प्रतिबंधों के लिए कहीं ज्यादा तैयार
असल में यह कोई पहली बार नहीं है जब रूस पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा रहे हैं। इसके पहले साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उस पर कब्जा किया था तो अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे। उस वक्त इन प्रतिबंधों की वजह से रूस की जीडीपी में 2.5 फीसदी की गिरावट आई थी और वहां पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। लेकिन सीएनन की रिपोर्ट के अनुसार रूस 2014 की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत है। और अगर सख्त प्रतिबंध लगे तो जीडीपी में एक फीसदी की गिरावट आएगी और अगर SWIFT (200 देश फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन के लिए करते हैं स्विफ्ट का इस्तेमाल) तो 5 फीसदी तक जीडीपी में गिरावट आ सकती है।
पिछले 20 साल में रूस के कारोबार को देखा जाय तो उसके निर्यात और आयात में अमेरिका और यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार रूस ने 2020 में रूस ने 300 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात किया था और 200 अरब डॉलर से ज्यादा आयात किया है। और इसमें अमेरिका, यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है और चीन और दूसरे देशों की हिस्सेदारी बढ़ी है। इसी तरह 2014 की तुलना में रूस का गोल्ड और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है। 2014 में रूस के पास करीब 500 अरब डॉलर का रिजर्व था। जबकि फरवरी के आंकड़ों के अनुसार रूस के पास 630 अरब डॉलर का रिजर्व है।
रूस को किस बात का है डर
रूस को इस बात का डर है कि अगर यूक्रेन नाटो का हिस्सा बन गया तो वह उसकी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इसके अलावा रूस के रूस के रक्षा मंत्री शोइगु ने दावा किया है कि यूक्रेन परमाणु हथियार हासिल कर सकता है। साथ राष्ट्रपति पुतिन ने यह भी दावा है कि यूक्रेन क्रीमिया को वापस हासिल करना चाहता है। ऐसे में पुतिन का कहना है इन समीकरणों से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी और यूक्रेन , उत्तर कोरिया से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। उनका कहना है कि वह यूक्रेन को किसी भी स्थिति में परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे। इन परिस्थितियों में रूस किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं है। और इस लड़ाई में चीन भी इन डायरेक्ट रूप से रूस के साथ खड़ा हुआ नजर आता है। जो कि रूस के लिए न केवल बड़ा बाजार है बल्कि कूटनीतिक रूप से मजबूत कड़ी है।