थियानमेन चौक नरसंहार : रातों-रात निहत्‍थे लोगों पर टूटा था चीनी सेना का कहर, आज भी सबूत मिटा रहा है चीन

Tiananmen square massacre 1989: चीन की राजधानी बीजिंग में अप्रैल 1989 में हजारों छात्र-मजदूर एकत्र हुए थे। इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए चीनी सेना टैंकों के साथ पहुंची थी।

थियानमेन चौक नरसंहार : रातों-रात निहत्‍थे लोगों पर टूटा था चीनी सेना का कहर, आज भी सबूत मिटा रहा है चीन
थियानमेन चौक नरसंहार : रातों-रात निहत्‍थे लोगों पर टूटा था चीनी सेना का कहर, आज भी सबूत मिटा रहा है चीन  |  तस्वीर साभार: AP, File Image
मुख्य बातें
  • चीन के वामपंथी शासन के इतिहास में इसे सबसे बड़ा राजनीतिक प्रदर्शन कहा जाता है
  • बीजिंग में 15 अप्रैल, 1989 को शुरू हुआ यह विरोध-प्रदर्शन 6 सप्‍ताह तक चला था
  • चीनी सुरक्षा बल टैंकों के साथ वहां पहुंचे थे और लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी

बीजिंग : चीन में लोकतंत्र की आवाज को किस तरह दबाया जाता है, 'थियानमेन चौक नरसंहार' उसी का एक उदाहरण है। घटना 32 साल पुरानी है, जब साल 1989 में कम्‍युनिस्‍ट चीन में लोकतंत्र के समर्थन में बड़ा विरोध-प्रदर्शन हुआ था। इसमें हजारों छात्र और मजदूर इकट्ठा हुए थे, जो आजादी की मांग कर रहे थे। कुछ लोगों की शिकायत बढ़ती महंगाई, कम तनख्वाह और घरों को लेकर भी थी।

चीन में कम्‍युनिस्‍ट क्रांति के बाद 1949 में हुए सत्‍ता परिवर्तन के बाद वामपंथी शासन के इतिहास में इसे सबसे बड़ा राजनीतिक प्रदर्शन कहा जाता है। चीन में कम्‍युनिस्‍ट क्रांति के बाद माओत्से तुंग की अगुवाई में जनवादी चीन की स्‍थापना हुई थी और यह देश पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के रूप में सामने आया। लेकिन इस बदलाव से बहुत से लोग खफा थे। उनकी नाराजगी सरकार की नीतियों को लेकर थी।

अधिकारों, स्‍वतंत्रता की मांग

चीन में सत्‍ता परिवर्तन के बाद अस्तित्‍व में आई कम्‍युनिस्‍ट सरकार से जो लोग नाखुश थे, वे दबी आवाज में इसका विरोध कर रहे थे। चीनी प्रशासन हर बार ऐसी आवाजों को दबा देता था। लेकिन 1989 आते-आते यह आवाज मुखर हो गई थी। लोकतंत्र के समर्थन में उठी यह आवाज शहरों और विश्वविद्यालयों तक पहुंच गई थी, जिससे लाखों छात्र और मजदूर जुड़ते चले गए।

FILE - In this May 17, 1989, file photo, Tiananmen Square is filled with thousands during a pro-democracy rally, in Beijing, China. Over seven weeks in 1989, student-led pro-democracy protests centered on Beijing’s Tiananmen Square became China’s greatest political upheaval since the end of the Cultural Revolution more than a decade earlier.(AP Photo/Sadayuki Mikami, File)

शासन पर 'तानाशाही' रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए वे इसे समाप्‍त करने और अपने अधिकारों, स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे। उनकी मांग लोकतंत्र बहाली, बढ़ती महंगाई, वेतन वृद्धि को लेकर भी थी, जिसके लिए वे बीजिंग के थियानमेन चौक पर एकत्र होने लगे। 15 अप्रैल, 1989 से ही यह सिलसिला शुरू हुआ, जिसके बाद यहां जुटने वालों की भीड़ लगातार बढ़ती ही रही।

टैंक लेकर पहुंची चीनी सेना

इस तरह लोकतंत्र के समर्थन में शुरू हुए इस प्रदर्शन से चीन के कम्‍युनिस्‍ट शासन के लिए चुनौती बढ़ती जा रही थी। 15 अप्रैल को शुरू हुआ यह विरोध प्रदर्शन यह छह सप्ताह तक चला था। लोकतंत्र बहाली के समर्थन में हुए उस प्रदर्शन के दौरान थियानमेन चौक पर जमा हुए प्रदर्शनकारियों की संख्‍या 10 लाख से अधिक बताई जाती है। चीन में जिस स्‍तर का यह प्रदर्शन हो रहा था, उसे देखते हुए बड़े बदलाव की उम्‍मीद की जा रही थी, लेकिन तत्‍कालीन शासन ने इसे बुरी तरह कुचल दिया, जिसमें हजारों निहत्‍थे लोग मारे गए।

FILE - In this June 5, 1989 file photo, a Chinese man stands alone to block a line of tanks heading east on Beijing's Changan Blvd. in Tiananmen Square. The man, calling for an end to the recent violence and bloodshed against pro-democracy demonstrators, was pulled away by bystanders, and the tanks continued on their way. Over seven weeks in 1989, student-led pro-democracy protests centered on Beijing’s Tiananmen Square became China’s greatest political upheaval since the end of the Cultural Revolution more than a decade earlier.(AP Photo/Jeff Widener, File )

थियानमेन चौक पर मौजूद लाखों प्रदर्शनकारियों के लिए 3 जून की रात कहर बनकर आई, जब सुरक्षा बल टैंकों के साथ वहां पहुंचे और लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। शुरुआत में चीन ने इसमें लोगों के हताहत होने की बात भी नहीं बताई और बाद में इसकी संख्‍या 200 से 300 के बीच बताई, लेकिन कई विदेशी रिपोर्ट्स में चीन की इस कार्रवाई में 3000 से अधिक लोगों के मारे जाने और हजारों लोगों के घायल होने की बात कही गई। बाद में एक ब्रिट‍िश रिपोर्ट में हताहतों की संख्‍या 10,000 बताई गई, जो उस वक्‍त चीन में तैनात रहे ब्रिटेन के राजदूत एलन डोनाल्‍ड के लंदन भेजे गए पत्र पर आधारित थी।

चीन को आज भी अफसोस नहीं

निहत्‍थे लोगों पर हुई इस दमनात्‍मक कार्रवाई को लेकर पूरी दुनिया ने चीन को धिक्‍कारा। लेकिन बीजिंग को आज भी उस घटना का अफसोस नहीं है। चीनी प्रशासन अव्वल तो उस घटना का सार्वजनिक तौर पर जिक्र करने से बचता रहा है। लेकिन 2019 में चीन के रक्षा मंत्री वी फेंघी ने उस बयान ने एक बार पूरी दुनिया का ध्‍यान खींचा, जिसमें उन्‍होंने तत्‍कालीन चीन सरकार के उस कदम का बचाव किया। एक क्षेत्रीय फोरम में उन्‍होंने कहा कि उस समय बढ़ती 'अशांति' को रोकने के लिए यह नीति अपनाना ही 'सही' था।

FILE - In this May 18, 1989 file photo, pro Democracy demonstrators carry portraits of former Chinese rulers Mao Tse-Tung and Chou En-Lai as they march to join student strikers at Tiananmen Square, Beijing, China. Over seven weeks in 1989, the student-led pro-democracy protests centered on Beijing’s Tiananmen Square became China’s greatest political upheaval since the end of the decade-long Cultural Revolution more than a decade earlier. (AP Photo/Sadayuki Mikami, File)

चीन आज भी करता है सेंसर

चीन 1989 में हुई उस घटना की रिपोर्टिंग को भी बड़े पैमाने पर सेंसर करता रहा है। न केवल तब, बल्कि आज भी चीन इसे लेकर चौकस रहता है और हर साल जैसे ही 4 जून की तारीख नजदीक आती है, चीनी प्रशासन इसे भुलाने की पूरी कोशिश करता है। हर साल इस अवसर पर चीन की सेंसरशिप मशीनरी शुरू हो जाती है, जो इंटरनेट से इस घटना से जुड़ी सामग्री को हटाने के काम में लग जाती है।

टोरंटो यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी की 2020 में आई एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि चीनी प्रशासन 1989 की उस घटना से जुड़े 3200 से अधिक सबूतों को मिटा चुका है, जबकि बड़ी संख्‍या में इससे जुड़ी सामग्री को सेंसर कर दिया गया है। यहां तक कि थियानमेन चौक पर अगर कोई विदेशी मीडिया का व्यक्ति जाना चाहता है तो उसे उस जोन में उसे नहीं जाने दिया जाता, जहां प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थी।

FILE - In this early June 4, 1989, file photo, civilians hold rocks as they stand on a government armored vehicle near Changan Boulevard in Beijing. Over seven weeks in 1989, student-led pro-democracy protests centered on Beijing’s Tiananmen Square became China’s greatest political upheaval since the end of the Cultural Revolution more than a decade earlier. (AP Photo/Jeff Widener, File)

चीन में अगर कोई 1989 की उस स्याह घटना को लेकर कोई समारोह आयोजित करने की कोशिश करता है तो उसे साढ़े तीन साल तक जेल की सजा का भी प्रावधान है। प्रशासन की ऐसी तमाम सख्तियों के बीच चीन में लोग इस बारे में बोलना भी पसंद नहीं करते। 

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