Ukraine Crisis : यूक्रेन पर पुतिन ने चल दिया है 'मास्टरस्ट्रोक', गेंद अब अमेरिका के पाले में 

Ukraine Crisis : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बिना युद्ध लड़े यूक्रेन के दो टुकड़े कर दिए हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश भौचक हैं। उन्हें सूझ नहीं रहा कि अब क्या करें। वे रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं।

Ukraine Crisis : Putin played 'masterstroke' on Ukraine, ball is now in America's court
रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा कर सकते हैं पश्चिमी देश।   |  तस्वीर साभार: AP

Ukraine Crisis : सोमवार आधी रात को व्लादिमीर पुतिन ने बिना युद्ध लड़े यूक्रेन के दो टुकड़े कर दिए। डोनबास प्रांत के डोनेट्स्क एवं लुहांस्क इलाके को उन्होंने स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी। साथ ही उन्होंने इन दोनों 'स्वतंत्र देशों' को जरूरत पड़ने पर सैन्य एवं आर्थिक मदद देने का वादा किया है। पुतिन के इस कदम से अमेरिका सहित पश्चिमी देश भौचक रह गए। उन्हें शायद इस बात का पहले से अंदेशा नहीं था कि रूसी राष्ट्रपति इस तरह का कदम उठा सकते  हैं। शायद वे यूक्रेन पर हमले का इतंजार कर रहे थे। विशेषज्ञ पुतिन के इस कदम को मास्टरस्ट्रोक के रूप में देख रहे हैं।  

गेंद अब पश्चिमी देशों के पाले में
रूस ने एक तरह से गेंद अब अमेरिका और पश्चिमी देशों के पाले में डाल दी है। डोनेट्स्क एवं लुहांस्क को स्वतंत्र देश घोषित कर रूस ने एक तरह से लकीर खींच दी है। यूक्रेन, अमेरिका या पश्चिमी देश यदि इन दोनों क्षेत्रों को वापस पाने के लिए यदि कोई सैन्य कार्रवाई करते हैं तो उसे रूस से सीधे टकराना होगा। यूक्रेन के पास इतनी सैन्य ताकत नहीं है कि वह मैदान में अकेले रूस का सामना कर सके। अमेरिका और नाटो यदि रूस के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के बारे में सोचते हैं तो भयंकर युद्ध छिड़ सकता है। इसका खामियाजा पूरे यूरोप सहित दुनिया को भुगतना होगा। ऐसे में नहीं लगता कि यूक्रेन के मामले में अपना हाथ जलाने के लिए नाटो या यूरोप का कोई देश जंग में कूदना चाहेगा। 

अपनी सुरक्षा चिंता पहले भी जाहिर कर चुका था रूस
ऐसा नहीं है कि पुतिन ने रूस की सुरक्षा चिंताओं से हाल ही में यूरोप एवं अमेरिका से परिचित कराया है। वह बहुत पहले से नाटो एवं अमेरिका से अपनी सीमा से दूर रहने के लिए कहते आ रहे हैं। रूस की सुरक्षा चिंताओं की अमेरिका एवं पश्चिमी देशों ने अनदेखी की है। नाटो की मंशा किसी से छिपी नहीं है। वह अपना विस्तार करते हुए रूस की सीमा के नजदीक आना चाहता है। जाहिर है कि इससे रूस की परेशानी बढ़ी है। साल 1991 में जब रूस का विघटन हुआ था तो पश्चिमी देशों के वार्ताकारों ने रूस के मिखाइल गोर्बाचेव को भरोसा दिया था कि वे रूस की सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करेंगे। इस बात पर सहमति भी थी कि एस्टोनिया, यूक्रेन जैसे सीमावर्ती देशों को बफर स्टेट के रूप में देखा जाएगा लेकिन यह भरोसा कहीं न कहीं टूटा है।

प्रतिबंधों पर जवाबी कार्रवाई कर सकता है रूस
रूस कभी नहीं चाहेगा कि अमेरिका और नाटो उसकी सरहद के करीब आएं और उसकी तरफ अपनी मिसाइलें तैनात करें। अमेरिका और पश्चिमी देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध यदि लगाते हैं तो रूस भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है। यूरोप के देशों में गैस एवं ऊर्जा की 40 प्रतिशत आपूर्ति रूस करता है। यहां तक कि अमेरिका के सहयोगी देश जापान एवं दक्षिण कोरिया भी रूस से मिलने वाले गैस पर निर्भर हैं। रूस के जवाबी कार्रवाई करे पर इन देशों में गैस एवं ऊंर्जा की भयंकर किल्लत हो सकती है। इससे दुनिया भर में तेल एवं ऊर्जा के दाम आसमान पर चढ़ सकते हैं। 

यूक्रेन पर भारत को देनी होगी सधी प्रतिक्रिया
यूक्रेन संकट पर भारतीय विदेश नीति एवं कूटनीति की भी परीक्षा होनी है। अमेरिका और रूस दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को देखते हुए भारत को बहुत संभलकर अपनी प्रतिक्रिया देनी होगी। यूक्रेन के दो टुकड़े करने वाले रूस के इस कदम से चीन और पाकिस्तान दोनों का हौसला बढ़ सकता है। ये दोनों देश भारतीय क्षेत्र को लेकर कुछ इसी तरह की खुराफात करने की सोच सकते हैं। इसे देखते हुए भारत को सजग रहते हुए बहुत सतर्क प्रतिक्रिया देनी होगी।     

अगली खबर