'पश्चिमी देश वही लड़ते हैं जहां जीतना आसान हो', विशेषज्ञ मान रहे यूक्रेन को मिला 'धोखा'

Ukraine russia war : विदेशी मामलों के जानकार इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर अमेरिका एवं पश्चिमी देशों को जिम्मेदार मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नाटो और पश्चिमी देशों ने युद्ध से पहले बड़ी-बड़ी बातें कीं। उन्होंने इस तरह का संकेत दिया कि जरूरत पड़ने पर यूक्रेन की सुरक्षा के लिए वे अपनी फौज उतार देंगे।

'Western countries fight only where it is easy to win', experts believe Ukraine got 'cheated'
कीव में दाखिल होने वाली है रूस की सेना। 

Ukraine Russia war : यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अपने देश की रक्षा के लिए अमेरिकी सहित पश्चिमी देशों के सामने मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन मदद के लिए कोई देश सामने नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में उन्हें सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है। राष्ट्रपति ने यह गुहार ऐसे समय लगाई है जब रूस की सेना राजधानी कीव में दाखिल होने के लिए प्रयास कर रही है। यूक्रेन से जो रिपोर्टें आई हैं उन्हें देखने से लगता है कि अगले कुछ घंटों में रूस की सेना कीव में दाखिल हो जाएगी। कीव पर यदि रूस की सेना का नियंत्रण हो जाता है तो यूक्रेन पर एक तरह से उसका कब्जा मान लिया जाएगा। 

पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को इस स्थिति में पहुंचाया-विशेषज्ञ
विदेशी मामलों के जानकार इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर अमेरिका एवं पश्चिमी देशों को जिम्मेदार मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नाटो और पश्चिमी देशों ने युद्ध से पहले बड़ी-बड़ी बातें कीं। उन्होंने इस तरह का संकेत दिया कि जरूरत पड़ने पर यूक्रेन की सुरक्षा के लिए वे अपनी फौज उतार देंगे लेकिन जब लड़ाई शुरू हुई तो वे केवल बयानबाजी करने लगे। कार्रवाई के नाम पर उन्होंने रूस पर केवल कुछ प्रतिबंध  लगाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रतिबंधों का रूस पर बहुत मामूली असर होगा। प्रतिबंध उसके लिए नई बात नहीं है, वह पहले से ही प्रतिबंधों का सामना कर रहा है।  पश्चिमी देशों को लगा कि रूस प्रतिबंधों की बात से डर जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

जेलेंस्की ने कहा-उनका देश अकेला पड़ गया है
जानकार मानते हैं कि रूस जैसी महाशक्ति का सामना करना यूक्रेन के वश की बात नहीं थी लेकिन वह एक तरह से नाटो एवं पश्चिमी देशों के झांसे में आ गया। उसे लगा कि युद्ध की सूरत में उसे सैन्य मदद मिलेगी। लेकिन उसका यह भरोसा टूट गया।

इस बात को राष्ट्रपति जेलेंस्की के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि युद्ध के समय यूक्रेन अकेला पड़ गया है और उसे मझधार में छोड़ दिया गया। जाहिर है कि उनका इशारा अमेरिका और नाटो की तरफ है। 

जमीन पर लड़ाई लड़ना इनके बूते की बात नहीं-मारूफ रजा
टाइम्स नाउ नवभारत के 'कांट्रिब्यूटिंग एडिटर' मारूफ रजा ने कहा कि शीत युद्ध खत्म होने और सोवितय यूनियन के टूटने के बाद यदि किसी को सबसे ज्यादा लाभ हुआ तो वह पश्चिमी देश हैं। इन देशों ने अपने आर्थिक संपन्नता और अपने नागरिकों की सुख-सुविधा बढ़ाई, इन्होंने अपने आगे दुनिया के हितों का ख्याल नहीं रखा। ये वे लोग हैं जो चाहते हैं कि लड़ाई कम लड़ें लेकिन युद्ध का डंका ज्यादा बजाएं। ये आसमान से जाते हैं और बमबारी करके चले आते हैं। वे वहीं पर लड़ेंगे जहां जीतना आसान हो। अफगानिस्तान, सीरिया, इराक और लीबिया में हमने यही देखा। ये देश आमने-सामने वाली मुठभेड़ की लड़ाई लड़ने से बचते रहे हैं।  

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